साल 2020 में लोहड़ी (Lohri 2020) का त्यौहार भारत में 14 जनवरी को मनाया जाएगा। यह भारत के पंजाब प्रांत का बहुत बड़ा और प्रसिद्ध त्यौहार है। पूरा पंजाबी समुदाय इसे बेहद खुशी, उत्साह से नाच गाकर मानता है। यह पर्व शरद ऋतु के अंत मे मनाया जाता है। इसे हर्ष और खुशी का प्रतीक माना जाता है। बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी इस त्यौहार का हिस्सा खुशी-ख़ुशी बनते हैं। उत्तर भारत के कुछ राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर में भी इसे ख़ासा ज़ोर शोर के साथ मनाया जाता है। देश के अन्य हिस्सों में भी इसे अलग अलग रीति रिवाजों से मनाया जाता है। लोहड़ी का त्यौहार पंजाबी समुदाय के साथ साथ अन्य समुदाय के लोग भी बढ़ चढ़कर मनाते हैं। लोहड़ी को मकर संक्रांति के ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है इसलिए इसका संबंध सूर्य के मकर राशि मे प्रवेश से होता है।
नए साल की शुरूआत के साथ ही लोहड़ी की तैयारियां भी शुरू हो जातीं है। यह अपने साथ नए साल की ताज़गी और उमंग लेकर आती है। सर्दी होने के चलते अब तक रातें बड़ी और दिन छोटे होते थे लेकिन इस त्यौहार के बाद रातें छोटी और दिन बड़े होने शरू हो जाते हैं। इस दिन के बाद से ही ऋतु परिवर्तन होने लगता है और धीरे धीरे गर्मियां दस्तख़ देतीं है। लोहड़ी पूजन के बाद इस दिन आग के चारों और ढोल नगाड़ों के साथ गिद्दा नृत्य, भांगड़ा करने की मान्यता है। रात के समय आग के चारों तरफ सभी के इकट्ठा होने से आपस में समय बिताने का और मेलजोल बढ़ाने का मौका मिलता है।
अन्य सभी त्यौहारों की तरह लोहड़ी का त्यौहार मनाने के पीछे इतिहास के कई कारण वर्णित हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार लोहड़ी पर्व को विक्रम संवत एवं मकर संक्रांति से जोड़ा गया है। इस त्यौहार को शरद ऋतु के समापन पर मनाने का प्रचलन है साथ ही इस त्यौहार को किसानों के लिए नूतन वर्ष माना जाता है। लोहड़ी को मनाने के पीछे एक कहानी भी जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया तब कंस बाल कृष्ण को मारने के लिए नित्य नए प्रयास कर रहा था। एक बार जब सभी लोग मकर संक्रांति का पर्व मनाने में व्यस्त थे तब कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए ‘लोहित’ नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था। उस राक्षसी को बाल कृष्ण ने खेल खेल में ही मार डाला था। लोहित नाम की राक्षसी के नाम पर ही लोहड़ी उत्सव का नाम रखा गया था। उसी की याद में लोहड़ी का पावन पर्व मनाया जाता है। इस उत्सव को मनाने का मकसद स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है। पूस के महीने में बहुत ठंड होती है ऐसे में आग जलाने से शरीर को गर्मी मिलती है। वहीं गुड़, तिल, गजक, मूंगफली खाने से शरीर को कई आवश्य पोष्टिक तत्व व ऊर्जा मिलती हैं।
खुशियां और प्यार बांटने का पर्व लोहड़ी को पूरे जोश व धूम धाम के साथ मनाया जाता है। मुख्य रूप से पंजाबी समुदाय के लोग अग्नि को साक्षी मानकर पूजा करते है फिर रेबड़ी-गज्जक का प्रसाद खाते व बाँटते हैं। स्त्रियां पंजाबी लिबास में सज धज कर बेहद खूबसूरत लगतीं हैं। इन सभी का एक साथ लोक नृत्य करना व गाने गाना बहुत मनमोहक लगता है। हँसतें खिलखिलाते खूबसूरत चहरे ठंड भरी रात में ऊर्जा का संचार करते हैं। इस दिन लोग अपनी विवाहित बेटियों को आदर सम्मान के साथ घर बुलातें हैं और उनके साथ इस त्यौहार को मानतें है। इस दौरान उन्हें कई तरह की भेंट व मिठाईयां भी दी जातीं है। लोहड़ी के दिन प्रसाद के रूप में मुख्य रूप से पांच चीज़ें ज़रूर बांटी जाती है तिल, गजक, मूंगफली, गुड़ और मक्के के दानें।।
लोहड़ी से जुड़े सभी रीति रिवाजों का अपना विशेष महत्व है। इससे जुड़ी हर परंपरा के पीछे गहरा इतिहास छुपा है जो तब से आज की तारीख तक प्रासंगिक बना हुआ है। लोहड़ी पर साथ मिलकर गाये जाने वालें गीत भी अपना विशेष महत्व रखते हैं। यह गीत वातावरण में सकारात्मक किरणें व ऊर्जा भरने के साथ लोगों के जहन में ख़ुशी की लहर व हर्षोल्लास का अनुभव करातें हैं। लोकगीतों पर नाचना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। लोकगीतों के शब्दों में मुख्यतः किसानों की मनोदशा, खुशहाल फसल और उत्साह का वर्णन होता है। शब्दों के माध्यम से ही किसान अपनी फसल व अन्य सुविधाओं के लिए देवताओं का आभार व्यक्त करतें हैं व आने वाले समय में फसल में दुगनी, चौगुनी वृद्धि हो इसके लिए अपना व साथियों का जोश और उत्साह बढ़ाते है। गीत के द्वारा पंजाब के योद्धा दुल्ला भट्टी को भी याद किया जाता है। जब लोहड़ी की आग जलती है तो ढोल की ताल गिद्दा व भांगड़ा करके लोहड़ी का जश्न मनाया जाता है। लोहड़ी के मुख्य गीत में दुल्ला भट्टी का नाम लेकर उसे व उनके द्वारा किये गए सामाजिक कार्यों को याद किया जाता है।
लोहड़ी पर्व मनाने के पीछे दुल्ला भट्टी को एक मुख्य कारण माना जाता है। इस दिन गए जाने वाले कई गीतों में इसके नाम का जिक्र किया जाता है। दुल्ला भट्टी पर लोहड़ी से जुड़े कई गानों का केंद्र रहता है। मान्यता है कि अकबर के शासनकाल में अनेक राजपूतों ने घुटने टेकने के बजाए विद्रोह का मार्ग अपनाया इन्ही भट्टी राजपूतों में से एक हुआ प्रसिद्ध योद्धा दुल्ला भट्टी। उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो कि संदल बार मे था, दुल्ला सभी पंजाबियों का नायक था। वह रोबिन हुड की तरह था जो अमीर लोगो से धन लूटकर गरीबों में बांट देता था। वो एक अभियान के ज़रिये उन गरीब हिन्दू, सिख लड़कियों के विवाह में मदद भी करता था जिनके ऊपर शाही ज़मीदारों और शासकों की बुरी नज़र होती थी, जिनको अगवा कर लोग गुलाम बनाकर दासों के बाजार में बेच दिया करते थे। दुल्ला भट्टी ऐसी लड़कियों के लिए वर ढूंढकर उनका कन्यादान खुद करता था। ऐसी ही मुश्किल परिस्थितियों में दुल्ला भट्टी को सुंदरी और मुंदरी नाम की दो गरीब व रूपवान बहनों के बारे में पता चला जिन्हें वहां एक ज़मीदार अगवा कर ले आया था। दुल्ला ने अनेक कठिनाइयों के बावजूद उनके लिए वर ढूंढे और लोहड़ी के दिन जंगल मे लकड़ी इकट्ठा कर अग्नि जलाकर उनका विवाह कराया व कन्यादान किया। दुल्ला भट्टी की इस वीरता को हर साल इसी तरह याद किया जाता है।
हमारी तरफ से आप सभी को लोहड़ी की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं !