साल 2019 में लोहड़ी पर्व 14 जनवरी को मनाया जाएगा। यह हमारे देश का एक ऐसा त्यौहार है जिसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी, जिसका का अर्थ है- ल (लकड़ी)+ ओह (गोहा यानी सूखे उपले)+ ड़ी (रेवड़ी)। यह पर्व हर साल जनवरी माह में मनाया जाता है। यह पंजाब और हरियाणा का बड़ा खास पर्व है। लोहड़ी पर्व मकर संक्रांति के ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। हमारे देश में इस त्यौहार के लिए करीब 1 महीने से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। शहर हो या गाँव हर जगह मेले लगते हैं, बच्चे झूला झूलते हैं, लोग अपने घरों की साफ़ सफ़ाई करते हैं और इस दिन कई तरह के पकवान बनते हैं। महिलाएं लोहड़ी के गीत गाकर उपले बनाती हैं। इस उत्सव को पंजाबी समाज बहुत ही जोश और उत्साह के साथ मनाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गोबर के उपलों की माला बनाकर जो कुछ भी मांगा जाए तो वह निश्चित ही पूरा होता है। लोहड़ी वाले दिन हर चौराहे पर आग जलायी जाती है। जिसमें लोग पूरी शिदत से उबले डालते हैं। लोहड़ी पूजन करने के बाद उसमें तिल, गुड़, रेवड़ी एवं मूंगफली का भोग लगाया जाता है। इसके बाद यह प्रसाद सबको बांटा जाता है। इस अवसर पर ढ़ोल की थाप के साथ गिद्दा और भांगड़ा नृत्य विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं।
आपने भी देखा होगा कि लोहड़ी वाले दिन आग जलाकर लोग इसकी पूजा करते हैं। इस दिन आग जलाने के पीछे एक गहरा कारण है। ऐसी मान्यता है कि यह अग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है। वहीं पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन कराया था। इस आयोजन पर उन्होंने अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रण नहीं दिया था। इस बात से खफा होकर पुत्री सती अपने पिता के पास इस शिकायत से गई कि उन्होंने शिव को यज्ञ में आने के लिए निमंत्रण क्यों नहीं भेजा? राजा दक्ष ने अपनी पुत्री की बात का जवाब नहीं दिया बल्कि सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की। अपने पति का अपमान देखकर सती बहुत क्रोधित हुई और उसने उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर दिया। सती के मृत्यु का समाचार सुन भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा यज्ञ का विध्वंस करा दिया। तभी से इस पर्व में आग जलाई जाती है। हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि यह आग पूस की आखिरी रात और माघ की पहली सुबह की कड़क ठंड को कम करने के लिए जलाई जाती है।
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इस त्यौहार को मनाने के पीछे कई ऐतिहासिक कारण माने जाते हैं। विद्वानों का मानना है कि इस त्यौहार को मनाने का उद्देश्य बच्चों को अपनी परंपराओं और रीति रिवाजों से जोड़ना है। बड़े-बुजुर्गों के साथ उत्सव मनाने से नई पीढ़ी के बच्चे अपनी पुरानी मान्यताओं और तौर तरीकों को करीब से देखते हैं और भविष्य में उनका ही अनुसरण करते हैं। ढोल की थाप के साथ गिद्दा नाच का उत्सव शाम होते ही शुरू हो जाता है और देर रात तक चलता है। इस उत्सव को मनाने का मकसद स्वास्थ्य से भी जोड़ा जाता है। जनवरी महीना पूस का माह होता है। यह बेहद ठंडा होता है। ऐसे में आग जलाने से जहां शरीर को गर्मी मिलती है वहीं गुड और तिल खाने से शरीर को कई जरूरी पौष्टिक तत्व मिलते हैं।
कई वर्षों से लोग लोहड़ी पर्व को दूल्ला भट्टी नामक चरित्र से जोड़ते हैं। लोहड़ी के कई गीतों में इनके नाम का ज़िक्र आता है। कहते हैं कि मुगल काल में दुल्ला भट्टी नामक एक लुटेरा पंजाब में रहता था जो अमीर लोगों से धन लूटकर ग़रीबों में बाँटता था। साथ ही वह उन ग़रीब पंजाबी लड़कियों को बचाता था जो बाज़ार में बल पूर्वक बेची जाती थीं। वह ग़रीब, बेसहारा तथा लाचार लोगों का मसीहा था जो उनकी हर तरह से मदद करता था।
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जैसा कि हमने बताया कि लोहड़ी पंजाब एवं हरियाणा राज्य का प्रसिद्ध त्यौहार है, लेकिन फिर भी इस पर्व को देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। किसान वर्ग इस मौक़े पर अपने ईश्वर का आभार प्रकट करते हैं, ताकि उनकी फसल अच्छी हो।