बुद्ध पूर्णिमा भगवान बुद्ध को समर्पित पर्व है। दुनियाभर में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक पवित्र दिन है। हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह में आने वाली पूर्णिमा पर बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है, इसे वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध जयंती, वेसाक और हनमतसूरी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन सिद्धार्थ गौतम यानि गौतम बुद्ध के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। वैशाख पूर्णिमा पर ही भगवान बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ था तथा इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और 80 वर्ष की आयु में इसी ही दिन उन्होंने कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया था। यानि भगवान बुद्ध का जन्म, उन्हें ज्ञान की प्राप्ति और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन हुये थे। ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ आज तक नहीं हुआ है।
बुद्ध पूर्णिमा 2018 | 30 अप्रैल 2018, सोमवार |
बुद्ध पूर्णिमा 2019 | 18 मई 2019, शनिवार |
बुद्ध पूर्णिमा 2020 | 7 मई 2020, गुरुवार |
अहिंसा, मानवतावादी और विज्ञानवादी विचारों से भगवान गौतम बुद्ध विश्व के सबसे महान पुरुष कहलाये गये और उन्होंने बौद्ध धम्म दर्शन का प्रचार-प्रसार किया। पूरे विश्व में करीब 180 करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका और इंडोनेशिया समेत विश्व के कई देशों में बुद्ध पूर्णिमा बड़े उत्सव के साथ मनाई जाती है। हिन्दू धर्म में भी बुद्ध पूर्णिमा का बड़ा महत्व है। क्योंकि हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार में भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार कहा गया है।
भगवान बुद्ध का जन्म सिद्धार्थ गौतम के रूप में कपिलवस्तु नगरी के राजा शुद्धोदन के घर में हुआ था। बचपन से ही सिद्धार्थ माता-पिता के बाच लाड़-प्यार से भरा जीवन जीते रहे और उन्हें महल के बाहर की कोई खबर नहीं रही। कम उम्र में ही उनका विवाह यशोधरा नामक कन्या से हो गया और विवाह के बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
पिता राजा शुद्धोदन ने सिद्धार्थ के लिए भौतिक संसाधनों का इंतजाम किया था लेकिन यह सब वस्तुएँ सिद्धार्थ को संसार के मोह से बांधकर नहीं रख सकीं।
एक बार सिद्धार्थ ने अपनी सारथी को महल की दीवारों से बाहर निकलने के लिए कहा। यह पहली बार था जब वे महल की सीमाओं को लांघते हुए बाहर आये थे। अपनी इस यात्रा के दौरान उन्हें संसार के दुःखों का अहसास हुआ। उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति, विकलांग और एक शव को देखा और संसार के इस जीवन चक्र को समझा। लोगों के दुःखों ने उन्हें बेहद विचलित कर दिया और इसके बाद उन्होंने समस्त भौतिक सुखों को त्याग करने का फैसला ले लिया। सिद्धार्थ के बाल्यकाल में एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि यह लड़का एक साधु बनेगा और आखिरकार यह बात सच साबित हुई। 29 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ के जीवन में एक नया मोड़ आया और वे मानव सेवा के लिए पत्नी,पुत्र, सुख-सुविधा और महल छोड़कर जंगल की ओर निकल पड़े और यहीं से उनकी महान यात्रा की शुरुआत हुई।
सत्य और ज्ञान की खोज के लिए गौतम बुद्ध जंगलों में भटकते रहे। इस दौरान वे कई महात्मा व महापुरुषों से मिले, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। हालांकि वे इससे संतुष्ट नहीं हुए और आत्म-भोग व आत्म-मृत्यु के पथ पर चलते रहे। इस बीच वे बौद्धगया पहुंचे, जहां उन्होंने बौद्धि वृक्ष के नीचे कठोर तप किया और वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
वाराणसी में गौतम बुद्ध ने अपने पांच साथियों के साथ पहला उपदेश दिया। बाद में ये सभी पांच साथी संघा के नाम से जाने जाने लगें, संघा यानि बौद्ध भिक्षुकों का दल।
भगवान गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की और 4 प्रमुख संदेश दिए:
बुद्ध न तो ईश्वर थे और न ही उन्होंने स्वयं के ईश्वर होने का दावा किया। यह केवल लोगों का विश्वास था कि उनके अंतःकरण में दैवीय गुण समाहित हैं। उन्होंने अपने ज्ञान से लोगों को जीवन का वास्तविक अर्थ समझाया और उनको मुक्ति का मार्ग दिखाया है।
इनके द्वारा दिखाया गया अहिंसा का मार्ग इतना व्यापक था कि बौद्ध धर्म इजिप्ट से लेकर अफ़ग़ानिस्तान, श्रीलंका, कम्बोडिया, जापान, कोरिया, तिब्बत, ब्रह्मदेश (म्यांमार), स्याम (थाईलैंड), लाओस, वियतनाम, अनाम, चीन, सुमात्रा, जावा, ब्रोर्नियो, मलेशिया, चीन और मध्य एशिया के खोतान तक फैल गया।
भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह की पूर्णिमा को हुआ था। उन्होंने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में अपनी देह त्यागी थी।
बौद्ध धर्म के अनुयायियों के अनुसार गौतम बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति और उनका परिनिर्वाण वैशाख पूर्णिमा पर हुआ था, इसलिए यह एक महत्वपूर्ण दिन माना गया। क्योंकि इसी दिन से उन्होंने जन्म से लेकर मृत्यु तक के सफर को शुरू किया था। वर्ष 1950 में वर्ल्ड फैलोशिप ऑफ बुद्धिस्ट कॉन्फ्रेंस में वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती मनाए जाने का निर्णय लिया गया।
आइए बुद्ध पूर्णिमा उत्सव पर डालते हैं एक नज़र....
बुद्ध पूर्णिमा उत्सव को वैश्विक रूप से मनाया जाता है। भारत सहित नेपाल, श्रीलंका, म्यामार, एवं बौद्ध बाहुल्य देशों में इसे बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
भारत में बुद्ध पूर्णिमा उत्सव मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर और बिहार में मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा जयंती के दिन बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर को सजाया जाता है। यह मंदिर प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षुओं का शिक्षा का केन्द्र रहा है। इस दिन बौद्ध धर्म के अनुयायी भगवान बुद्ध के चरणों में अपना दिन व्यतीत करते हैं। इसके अतिरिक्त इस दिन दान पुण्य भी किया जाता है।
हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में पूर्णिमा की तिथि का विशेष महत्व है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से वैशाख पूर्णिमा पर सूर्य देव अपनी उच्च राशि मेष में होते हैं और चंद्रमा भी अपनी उच्च राशि तुला में स्थित होता है। शास्त्रों में पूरे वैशाख माह में गंगा स्नान का महत्व बताया गया है। मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा पर स्नान, दान और तप करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएँ!