पंचांग

पंचांग काल दिन को नामंकित करने की एक प्रणाली है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य, चंद्र, पृथ्वी और नक्षत्र - सभी की स्थिति, दूरी और गति का अध्ययन किया गया है। इनके आधार पर ही पृथ्वी पर होने वाले दिन-रात और अन्य संधि-काल को विभाजित कर एक पूर्ण सटीक पंचांग बनाया गया है। बारह मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। इसलिए मनुष्य जीवन में पंचांग की महत्वपूर्ण भूमिका है। दैनिक पंचांग और मासिक पंचांग से ही लोगों को विभिन्न त्यौहार, व्रत-उपवास और मुहूर्त आदि की जानकारी प्राप्त होती है। इसके साथ ही हमें हिन्दू पंचांग से विशेष मुहूर्त जैसे- चौघाड़िया, होरा, अभिजीत, राहु काल और दो घटी मुहूर्त आदि से संबंधित सूचना प्राप्त होती है।

पंचांग क्या है?

पंचांग को सामान्य भाषा में पाँच अंगों का समूह कहा जाता है। इन पाँच अंगों में तिथि, वार नक्षत्र, योग और करण सम्मिलित हैं। हिन्‍दू पंचांग तीन धाराओं के आधार काल गणना का निर्धारण करता है। इनमें चंद्र आधारित, नक्षत्र आधारित और सूर्य आधारित गणना शामिल है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चंद्रमा की एक कला को तिथि कहा जाता है। एक चन्द्र मास में क़रीब 30 तिथियाँ होती हैं। प्रत्येक चंद्रमास में 15 दिनों का एक पक्ष होता है और एक माह में दो पक्ष (शुक्ल और कृष्ण) होते हैं।

हिन्दी पंचांग के अनुसार एक सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक की काल अवधि को वार कहते हैं। सामान्य भाषा में 24 घंटों का एक वार होता है जिसे हम दिन कहते हैं। एक सप्ताह में सात वार (सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि) होते हैं। वहीं वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्र होते हैं। 27 नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं- अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवती।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य एवं चंद्रमा के संयोग से योग का निर्माण होता है। योग 27 प्रकार के होते हैं जिनमें विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति हैं। इन योगों की आवश्यकता यात्रा, मुहूर्त इत्यादि कार्य हेतु विशिष्ठ समय जानने के लिए पड़ती है। करण तिथि का आधा भाग होता है। ऐसे में प्रत्येक तिथि में दो करण होते हैं। करण की कुल संख्या 11 होती है। करण के नाम - बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज्य, विष्टी (भद्रा), शकुनि, चतुष्पाद, नाग, किंस्तुघन।