अन्नप्राशन संस्कार मुहूर्त 2019

अन्नप्राशन संस्कार को हिन्दू धर्म में उच्च कोटि का दर्जा प्राप्त है। अन्नप्राशन हिन्दू धर्म में किये जाने वाले 16 संस्कारों में से सांतवा संस्कार है। मुंडन की तरह ही अन्नप्राशन को भी बाल्यकाल में ही किया जाता है। इस संस्कार में शिशु को पहली बार अन्न ग्रहण कराया जाता है। इस दिन पूरे विधि विधान से पंडितों से पूजा करवायी जाती है और मंत्रोउच्चारण होता है, इसके बाद शिशु को चांदी के सिक्के से अन्न खिलाया जाता है। बच्चा कम से कम 1 साल तक तो मां का ही दूध पीता है, लेकिन फिर भी यह प्रक्रिया शिशु के जन्म के 6 माह बाद से 2 साल के बीच में कराई जाती है। इस संस्कार को कराने का लक्ष्य शिशु को उन सभी पोषक तत्वों से जोड़ना है जिसकी उसके शरीर को जरूरत है और जो उसे मां के दूध से नहीं मिल पाता है। अन्नप्राशन संस्कार को देश के अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह शुभ कार्य सही मुहूर्त पर ही संपन्न कराना चाहिए। यदि ऐसा किया गया तो शिशु को काफी लाभ मिलता है।

अन्नप्राशन संस्कार

अन्नप्राशन मुहूर्त 2019
दिनांक दिन तिथि नक्षत्र समय अवधि
07 जनवरी 2019 सोमवार प्रतिपदा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में 09:19 - 13:59 बजे तक
09 जनवरी 2019 बुधवार तृतीया धनिष्ठा नक्षत्र में 07:15 - 13:15 बजे तक
21 जनवरी 2019 सोमवार पूर्णिमा पुष्य नक्षत्र में 07:14 - 10:46 बजे तक
06 फरवरी 2019 बुधवार द्वितीया शतभिषा नक्षत्र में 07:07 - 09:53 बजे तक
07 फरवरी 2019 गुरुवार द्वितीया शतभिषा नक्षत्र में 07:06 - 12:09 बजे तक
15 फरवरी 2019 शुक्रवार दशमी मृगशिरा नक्षत्र में 07:27 - 13:19 बजे तक
08 मार्च 2019 शुक्रवार द्वितीया उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में 06:40 - 14:13 बजे तक
13 मार्च 2019 बुधवार सप्तमी रोहिणी नक्षत्र में 06:34 - 13:53 बजे तक
21 मार्च 2019 गुरुवार पूर्णिमा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में 06:25 - 07:13 बजे तक
10 अप्रैल 2019 बुधवार पंचमी रोहिणी नक्षत्र में 06:02 - 14:24 बजे तक
12 अप्रैल 2019 शुक्रवार सप्तमी आर्द्रा नक्षत्र में 09:54 - 13:24 बजे तक
17 अप्रैल 2019 बुधवार त्रयोदशी उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में 05:54 - 13:56 बजे तक
19 अप्रैल 2019 शुक्रवार पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में 06:02 - 16:05 बजे तक
16 मई 2019 गुरुवार द्वादशी हस्ता नक्षत्र में 08:15 - 14:19 बजे तक
06 जून 2019 गुरुवार तृतीया पुनर्वसु नक्षत्र में 05:23 - 09:55 बजे तक
07 जून 2019 शुक्रवार चतुर्थी पुष्य नक्षत्र में 07:38 - 15:09 बजे तक
12 जून 2019 बुधवार दशमी हस्ता नक्षत्र में 06:06 - 14:49 बजे तक
17 जून 2019 सोमवार पूर्णिमा ज्येष्ठा नक्षत्र में 10:43 - 14:00 बजे तक
04 जुलाई 2019 गुरुवार द्वितीया पुष्य नक्षत्र में 05:28 - 15:42 बजे तक
08 जुलाई 2019 सोमवार षष्ठी उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में 07:42 - 15:26 बजे तक
11 जुलाई 2019 गुरुवार दशमी स्वाति नक्षत्र में 05:31 - 15:15 बजे तक
05 अगस्त 2019 सोमवार पंचमी हस्ता नक्षत्र में 05:45 - 15:55 बजे तक
07 अगस्त 2019 बुधवार सप्तमी स्वाति नक्षत्र में 07:42 - 15:26 बजे तक
09 अगस्त 2019 शुक्रवार नवमी अनुराधा नक्षत्र में 10:00 - 15:40 बजे तक
15 अगस्त 2019 गुरुवार पूर्णिमा श्रवण नक्षत्र में 05:50 - 15:16 बजे तक
11 सितंबर 2019 बुधवार त्रयोदशी श्रवण नक्षत्र में 06:04 - 13:59 बजे तक
30 सितंबर 2019 सोमवार द्वितीया चित्रा नक्षत्र में 06:13 - 12:08 बजे तक
02 अक्टूबर 2019 बुधवार चतुर्थी विशाखा नक्षत्र में 12:52 - 14:11 बजे तक
03 अक्टूबर 2019 गुरुवार पंचमी अनुराधा नक्षत्र में 06:15 - 10:12 बजे तक
04 अक्टूबर 2019 शुक्रवार षष्ठी ज्येष्ठा नक्षत्र में 12:19 - 14:03 बजे तक
07 अक्टूबर 2019 सोमवार नवमी उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में 12:38 - 13:52 बजे तक
30 अक्टूबर 2019 बुधवार तृतीया अनुराधा नक्षत्र में 06:32 - 14:03 बजे तक
01 नवंबर 2019 शुक्रवार पंचमी मूल नक्षत्र में 06:33 - 12:50 बजे तक
06 नवंबर 2019 बुधवार नवमी शतभिषा नक्षत्र में 07:21 - 13:36 बजे तक
07 नवंबर 2019 गुरुवार दशमी शतभिषा नक्षत्र में 06:37 - 08:41 बजे तक
28 नवंबर 2019 गुरुवार द्वितीया ज्येष्ठा नक्षत्र में 07:34 - 13:37 बजे तक
29 नवंबर 2019 शुक्रवार तृतीया मूल नक्षत्र में 06:55 - 07:33 बजे तक
06 दिसंबर 2019 शुक्रवार दशमी उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में 07:00 - 13:05 बजे तक
12 दिसंबर 2019 गुरुवार पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र में 07:04 - 10:42 बजे तक

अन्नप्राशन संस्कार

जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि अन्नप्राशन संस्कार हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। अन्न को व्यसन के रूप में नहीं औषधि और प्रसाद के रूप में लिया जाय, इस संकल्प के साथ अन्नप्राशन संस्कार सम्पन्न कराया जाता है। जब शिशु अपनी मां के गर्भ में होता है तो जातक में मलिन भोजन के कुछ दोष आ जाते हैं उन्हीं के निदान व शिशु के सुपोषण के लिए शिशु को जिस प्रक्रिया के तहत शुद्ध भोजन कराया जाता है उसे अन्नप्राशन संस्कार कहते हैं। हिंदू धर्म के सोलह संस्कार में से अन्नप्राशन सांतवा संस्कार है। अन्न के सेवन से सिर्फ शरीर को ही पोषण नहीं मिलता है बल्कि मन, बुद्धि, तेज व आत्मा को भी पोषण मिलता है। यदि शिशु को बचपन में ही अच्छा और पौष्टिक खाना खिलाया जाए तो शिशु के शरीर में सभी पंच तत्व समान रूप से बने रहते हैं। इस संस्कार का महत्व तब और भी ज्यादा बढ़ जाता है जब इसे शुभ मुहूर्त पर ​कराया जाए।

अन्नप्राशन संस्कार की महत्ता

अन्नप्राशन संस्कार का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। ज्योतिषियों का कहना है कि अन्नप्राशन संस्कार शिशु के जन्म के छठे या सातवें महीने में कराना उचित होता है। इस अवस्था में शिशु के आगे के 4 दांत भी आ जाते हैं। जिसके चलते उसके दांत और उसकी पाचन क्रिया हल्के भोजन को पचाने में भी सक्षम हो जाती है। इस समय शिशु को ऐसा अन्न दिया जाना चाहिये जिसे पचाने में आसानी हो और जो शरीर के लिए पौष्टिक हो। ऐसे में पौष्टिक भोजन के सेवन से शिशु तंदुरुस्त होने लगता है और उसका मानसिक विकास भी होता है। जो बच्चे सिर्फ मां के दूध पर ही निर्भर रहते हैं उनमें भविष्य में कई बीमारियों की चपेट में आने की संभावना रहती है। शिशु जब 6 माह का हो जाता है तो उसे हल्का खाना खिलाने से शिशु की याददाश्त हमेशा तेज रहती है और पढ़ाई से लेकर हर क्षेत्र में वो अव्वल रहता है। इतना ही नहीं इससे जातक तेजस्वी व बलशाली भी होता है।

अन्नप्राशन मुहूर्त की ज्योतिषीय गणना

अन्नप्राशन संस्कार यदि शुभ मुहूर्त पर किया जाए तो इसकी सफलता कई गुना तक बढ़ जाती है। जब शिशु छह माह का हो जाता है तो इसी समय में अन्नप्राशन संस्कार संपन्न करा देना चाहिए। ज्याोतिष और हिंदू पंचाग के मुताबिक बालक और बालिका दोनों के अन्नप्राशन संस्कार का समय अलग-अलग होता है। इसलिए पहले इस चीज की पुष्टि कर लें कि आप किस समय पर किसका संस्कार कर रहे हैं। यदि घर में पुत्र जन्म ले तो उसका अन्नप्राशन संस्कार सम माह यानि छठें और आठवें महीने में किया जाता है, जबकि बालिकाओं का विषम मास में यानि पांचवें और सातवें महीने में संपन्न कराया जाता है। पंडित से पूछकर, नक्षत्र के आधार पर या फिर आजकल कैलेंडर में भी शुभ तिथि के बारे में विस्तार से बताया गया होता है, उन्हें देखकर बच्चे का अन्नप्राशन संस्कार कर सकते हैं। नवरात्रि में अष्टमी और नवमी तिथि पर भी अन्नप्राशन संस्कार कराना काफी शुभ माना जाता है।

अन्नप्राशन संस्कार के ज्योतिष दृष्टिकोण

इस संस्कार को अलग-अलग जातियों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। शास्त्रों के मुतााबिक अन्नप्राशन संस्कार वाले दिन शिशु को स्नान कराके नये कपड़े पहनाने चाहिए। इस संस्कार के लिए त्रयोदशी, द्वितीया, पंचमी, दशमी, एकादशी और द्वादशी शुभ तिथि मानी जाती हैं। जबकि गुरुवार, सोमवार, शुक्रवार और बुधवार शुभ दिन हैं। अन्नप्राशन को शुभ मुहूर्त में करते वक्त देवी देवताओं और घर के इष्ट देवता की पूजा होती है। पूजा के बाद बच्चे के दादा-दादी, माता-पिता और अन्य परिजन उसे चांदी के सिक्के से चावल की खीर खिलाते हैं। जब भी इस अवसर के लिए मुहूर्त निकालें तो वह पंचाग और नक्षत्र पर आधारित होना चाहिए।

अन्नप्राशन संस्कार की सावधानियां

  • आजकल लोग खुद को इतना काबिल और आत्मनिर्भर समझने लगे हैं कि दूसरों से सहायता मांगने या फिर किसी को अपने समारोह में बुलाने पर छोटा महसूस करते हैं। लेकिन ध्यान रखें यदि आप अपने बच्चे का अन्नप्राशन संस्कार कर रहे हैं तो इस शुभ अवसर पर बच्चे को आशीष प्रदान करने के लिए रिश्तेदारों और बड़े-बुजुर्गों को बुलाएं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बच्चे को जितना आर्शीवाद मिलेगा वह ​उतना स्वस्थ और सक्षम होगा।
  • इस अवसर पर आपके घर में जो भी पकवान बने उसे बच्चे को या फिर रिश्तेदारों को खिलाने से पहले भगवान को भोग लगाएं। इससे भगवान की कृपा और आर्शीवाद बच्चे पर हमेशा बना रहेगा।
  • इस दिन घर में भूलकर भी मीट, मुर्गा या मछली जैसे तामसी भोजन ना पकाएं। इससे घर में नकारात्मक शक्तियों के आने का खतरा रहता है।
  • घर के मुख्य द्वार को आम की पत्तियों से सजाएं। पंडित यदि इस दिन बच्चे की मां को मुख्यद्वार पर लाल रंग के छापे लगाने को कहे तो इससे परहेज न करें। ये शुभ संकेत होते हैं।
  • घर में आने वाले हर अतिथि का सम्मान करें। यदि हो सके तो आस-पास के भिखारी, भूखे या फिर जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएं और उन्हें उपहार भेंट करें।