दिवाली को दीपावली के नाम से भी जानते हैं। ये हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। ये पर्व मर्यादा पुरुषोत्म श्रीराम के वनवास से अयोध्या आगमन की खुशी में मनाया जाता है। दुनिया के किसी भी देश में जहां सनातन परंपरा को मानने वाले लोग निवास करते हैं, वहां दीपावली अवश्य मनाया जाता है। इस दिन हिंदू, धन की देवी मां लक्ष्मी एवं भगवान गणेश का विधि विधान से पूजन-अर्चन करते हैं। दीपावली का पावन पर्व अंधकार पर प्रकाश की जीत का त्योहार है। इस दिन चारों ओर रोशनी होती है, लोग पटाखे छोड़ते हैं। दीपावली को हिंदू के अलावा जैन, बौद्ध और सिक्ख भी मनाते हैं। सिक्ख धर्म के लोग जहां इसे अपने छठवें गुरु हरिगोबिंद जी के जहांगीर के बंदीगृह से बाहर निकलने की खुशी में बंदी छोड़ दिवस के तौर पर मनाते हैं तो वहीं जैन समाज के लोग इसे भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के तौर पर आयोजित करते हैं।
दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त | |
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त | 18:44:04 से 20:14:27 तक |
अवधि | 1 घंटे 30 मिनट |
प्रदोष काल | 17:40:34 से 20:14:27 तक |
वृषभ काल | 18:44:04 से 20:39:54 तक |
सूचना: यह मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है।
दीपावली कार्तिक महीने के अमावस्या के दिन प्रदोष काल में मनाई जाती है। वैदिक मतों के अनुसार अगर दो दिनों तक अमावस्या को प्रदोष काल का स्पर्श न हो रहा हो तो दूसरे दिन दिवाली मनाई जाती है। वहीं कुछ विशेष मतों के अनुसार अगर दो दिनों तक अमावस्या को प्रदोष काल नहीं आता हो तो एक दिन पूर्व ही दिवाली मनाई जानी चाहिए। कुछ विद्वानां का मानना है कि अगर अमावस्या की तिथि ही न पड़े और चतुर्दशी के बाद सीधे प्रतिपदा प्रारंभ हो जाए तो ऐसे में चतुर्दशी को ही दिवाली मनाई जानी चाहिए। इस गणना के अनुसार वर्ष 2019 में दिवाली 27 अक्टूबर रविवार को मनायी जाएगी।
मुहूर्त का नाम | समय | विशेषता | महत्व |
प्रदोष काल | सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त | लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे उत्तम समय | स्थिर लग्न की वजह से पूजा का विशेष महत्व |
महानिशीथ काल | मध्य रात्रि में पड़ने वाला मुहूर्त | माता काली के पूजन का विधान | तांत्रिक पूजा के लिए शुभ समय |
प्रदोष काल: दिवाली के दिन मां लक्ष्मी का पूजन सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त यानी प्रदोष काल में किया जाना चाहिए। प्रदोषम के समय स्थिर लग्न में मां लक्ष्मी को पूजना सबसे उत्तम माना जाता है। विद्वानों के अनुसार जब वृषभ, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हो रहे हों तब पूजा का सबसे सही योग होता है क्योंकि इन चारों राशियों को सबसे स्थिर माना जाता है। ऐसी मान्यता प्रचलित है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान मां लक्ष्मी की पूजा होती है तो मां का अंश घर, आंगन और प्रतिष्ठान में ठहर जाता है।
महानिशीथ काल: इस काल के दौरान भी कई स्थानों पर मां लक्ष्मी के पूजन का विधान है लेकिन ये काल तंत्र साधकों और तांत्रिकों के लिए ज्यादा श्रेयष्कर होता है। इसी क्रम में मां काली की पूजा भी कई जगह होती है। सही यही होता है कि जिन्हें महानिशिथ काल की समझ हो, वही इस काल में मां लक्ष्मी का पूजन करें।
दिवाली त्योहार के पीछे की कथा चाहे जो भी हो लेकिन ये विशेष तौर पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए ही मनायी जाती है। इस दिन संध्या और रात्रि के समय अनुकूल मुहूर्त देख कर माता लक्ष्मी, गौरी पुत्र गणेश और विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक के अमावस की अंधेरी रात को मां लक्ष्मी स्वयं पृथ्वी पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। इस दौरान उन्हें जो भी घर सर्वाधिक स्वच्छ और प्रकाशमान नजर आता है, वहां उनका अंश मात्र ठहर जाता है। यही कारण है कि लोग दिवाली पर साफ सफाई का भी बेहद ध्यान रखते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी के साथ-साथ कुबेर जी की पूजा भी होती है। आइए, हम आपको बताते हैं कि किस विधि-विधान के साथ दिवाली पर पूजा करनी चाहिए।
दिवाली का त्योहार क्यों मनाया जाता है इसको लेकर कई कथाएं प्रचलित है, इनमें से दो बेहद पौराणिक और महत्वपूर्ण है।
कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने पिता महाराजा दशरथ जी की आज्ञा का पालन करते हुए 14 साल का वनवास काटा था और इस समय को व्यतीत करने के उपरांत अयोध्या लौटे थे। इसी दौरान श्रीरामचंद्र जी महाराज ने माता सीता का हरण करने वाले पापी रावण का विनाश किया था। असत्य पर सत्य की जीत हुई थी। अयोध्यावासियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी। अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर श्रीराम का स्वागत किया था, तब से दीवाली की परंपरा शुरु हुई। अधिकांश लोग इसी कथा को आधार बना कर दीवाली की परंपरा का निर्वाह करते हैं।
एक दूसरी कथा के अनुसार नरकासुर नामक एक राक्षस था, जिसने अपनी आसुरी शक्तियों का प्रयोग करते हुए देवी देवताओं, ऋषि मुनियों और साधु महात्माओं को परेशान कर रखा था। नरकासुर ने करीब 16 हजार स्त्रियों को बंधक बनाकर कारागार में डाल दिया था। ये स्त्रियां साधु महात्माओं की थीं। नरकासुर का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। परेशान देवी देवताओं और साधुओं ने भगवान श्रीकृष्ण से गुहार लगाई। श्रीकृष्ण ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और सभी को उसके दुराचारों से मुक्ति दिलाई। श्रीकृष्ण ने उसके कारागार में कैद सभी 16 हजार स्त्रियों को कैद से मुक्ति भी दिलाई। इसी खुशी में दूसरे दिन यानी कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने-अपने घरों को दिए की रोशनी से आलोकित किया, तभी से नरक चतुर्दशी और उसके अगले दिन से दिवाली मनाए जाने की परंपरा शुरु हो गई।
हिंदू धर्म में ज्योतिषि शास्त्र का स्थान बेहद महत्वपूर्ण है। सनातन परंपरा का पालन करने वाला हर हिंदू अपने प्रत्येक शुभ, अशुभ कार्यों को पूरा करने से पूर्व ज्योतिषिय सलाह अवश्य लेता है। ऐसी मान्यता है कि विभिन्न पर्व, त्योहारों पर ग्रहों की दशा दिशा और शुभ, अशुभ योग व्यक्ति के जीवन को खासा प्रभावित करते हैं और फलदायी होते हैं। दिवाली का त्योहार भी इनसे अलग नहीं है। हिंदू समाज के लिए दिवाली का त्योहार काफी अहम होता है। वह भी तब-जब हम आर्थिक युग में जी रहे हैं। हर व्यक्ति आर्थिक तौर पर मजबूत एवं सुरक्षित रहना चाहता है। यही कारण है कि यह त्योहार हर हिंदू के दिल के बेहद करीब होता है।
हिंदू धर्म में दिवाली का त्योहार किसी भी नए सामान जैसे वाहन, बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि की खरीद के लिए शुभ माना जाता है। किसी भी नए कार्य का शुभारंभ भी इसी समय होता है। इस विचार के पीछे और कुछ नहीं बल्कि ज्योतिषिय महत्व है। दीवाली के समय सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में और स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। वैदिक गणना के अनुसार सूर्य और चंद्रमा की एक साथ उपस्थिति बेहद शुभ और उत्तम फलदायक स्थिति मानी जाती है। तुला राशि के बारे में कहा जाता है कि यह राशि बेहद संतुलित होती है। इस राशि के स्वामी शुक्र हैं जो खुद सद्भाव, सम्मान, भाईचारा, प्रेम और हर्ष के प्रतीक माने जाते हैं। तुला राशि न्याय और अपक्षपात का द्योतक है। यही कारण है कि सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में उपस्थित होना सुखद और शुभ फलदायक माना जाता है।
ऐसा नहीं है कि दीपावली पर्व का सिर्फ आर्थिक, पौराणिक, वैदिक और ज्योतिषिय महत्व है बल्कि ये त्यौहार आध्यात्मिक और सामाजिक रुप से हर हिंदू के लिए विशेष महत्व रखता है। सनातन धर्म के शास्त्रों, पुराणों, ग्रंथों में दिवाली को आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार बताया गया है।
हमारी ओर से आपको दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं।