दशहरा 2019 दिनांक एवं महत्व

वर्ष 2019 में दशहरा 8 अक्टूबर को पूरे देश भर में मनाया जाएगा। हिंदू धर्म के सभी महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक दशहरा बेहद पवित्र एवं विशुद्ध धार्मिक त्योहार माना जाता है। दशहरा अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। दशहरा को विजयादशमी भी कहा जाता है। विजयादशमी को असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की विजय के त्योहार के रुप में मनाया जाता है। यूं तो विजयादशमी को लेकर कई सारी लोक कथाएं एवं दंत कथाएं प्रचलित हैं लेकिन पौराणिक मान्यतानुसार ये माता विजया के जीवन से जुड़ा हुआ उत्सव है। कई स्थानों पर दशहरा को शस्त्र पूजा अथवा शौर्य के प्रतीक त्योहार के रुप में मनाया जाता है। विजयादशमी बेहद विधि-विधान एवं वैदिक अनुष्ठानों के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है।

विजयदशमी मुहूर्त New Delhi, India के लिए

विजय मुहूर्त : 14:05:40 से 14:52:29 तक
अवधि : 0 घंटे 46 मिनट
अपराह्न मुहूर्त : 13:18:52 से 15:39:18 तक

दशहरा त्योहार मुहूर्त का महत्व

विजयादशमी अथवा दशहरा का त्योहार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अपराह्न काल में मनाया जाता है। अपराह्न काल की अवधि से तात्पर्य सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से लेकर बारहवें मुहूर्त तक मानी जाती है। यदि किसी गणनावश दशमी दो दिनों तक हो और सिर्फ दूसरे दिन ही अपराह्न काल व्याप्त हो रहा हो तो विजयादशमी दूसरे दिन मनाई जाती है।

अगर दशमी तिथि दो दिन के अपराह्न काल में हो तो दशहरा पहले दिन मना लिया जाएगा। यदि दोनों ही दिन दशमी पड़ रही है लेकिन अपराह्न काल में नहीं तो वैसी स्थिति में भी यह पर्व पहले दिन ही मना लिया जाएगा। यह याद रहे कि श्रवण नक्षत्र भी दशहरा पूजन के मुहूर्त को प्रभावित करता है। इससे संबंधित तथ्य नीचे दिए जा रहे हैं, जिनका आप अध्ययन कर सकते हैं।

  1. अगर दशमी की तिथि दो दिन तक पड़ती हो चाहे वो अपराह्न काल में हो या न हो लेकिन श्रवण नक्षत्र पहले दिन के अपराह्न काल में पड़ता है तो पहले दिन ही विजयादशमी का त्योहार मनाया जाएगा।
  2. यदि दशमी तिथि दो दिन पड़ती है। चाहे वो अपराह्न काल में हो या न हो। अगर श्रवण नक्षत्र दूसरे दिन के अपराह्न काल में आता है तो विजयादशमी का त्योहार दूसरे दिन ही मनाया जाएगा।
  3. एक और स्थिति में अगर दशमी तिथि दोनों दिन पड़े लेकिन अपराह्न काल सिर्फ पहले दिन हो तो दूसरे दिन दशमी तिथि पहले तीन मुहूर्त तक विद्यमान रहेगी और श्रवण नक्षत्र दूसरे दिन के अपराह्न काल में व्याप्त होगा तो दूसरे दिन ही विजयादशमी का पावन त्योहार मनाया जाएगा।
  4. अगर दशमी की तिथि पहले दिन के अपराह्न काल में हो और दूसरे दिन तीन मुहूर्त से कम हो तो वैसी परिस्थिति में विजयादशमी का त्योहार पहले दिन ही मना लिया जाएगा। अब इसमें श्रवण नक्षत्र की किसी भी स्थिति, परिस्थिति को खारिज कर दिया जाएगा।

दशहरा पूजा की विधि

विदित हो कि दशहरे में अपराजिता पूजा अपराह्न काल में की जाती है। पूजा की विधि नीचे बताई जा रही है।
  • सबसे पहले अपने घर की पूर्वोत्तर दिशा की किसी पवित्र स्थान को चिन्हित कर लें। यह स्थान किसी मंदिर, बगीचा या कमरे के आसपास भी हा सकता है। पूजा में परिवार के सभी सदस्य शामिल हो तो इससे बेहतर कुछ भी नहीं, हालांकि यह पूजा व्यक्तिगत भी हो सकती है।
  • पूजास्थल को साफ सुथरा कर वहां चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र यानी आठ कमल की पंखुड़ियां बनाएं।
  • पूजास्थल के समक्ष ही इस बात का संकल्प लें कि यह पूजा आप अपने लिए, अपने परिवार के लिए, किसी इष्ट मित्र के कल्याण अथवा खुशहाल जीवन की मंगलकामना के लिए कर रहे हैं।
  • चंदन के लेप से बनाए गए अष्टदल चक्र के मध्य में अपराजिताय नमः मंत्र के साथ मां अपराजिता देवी का आह्वान करें।
  • अब दायीं ओर मां जया का आह्वान करें। इसके लिए क्रियाशक्त्यै नमः मंत्र का उच्चारण करें।
  • बायीं ओर मां विजया का स्मरण करें। इसके लिए उमायै नमः का मंत्रोच्चार करें।
  • इसके बाद अपराजिताय नमः, जयायै नमः, विजयायै नमःिदि मंत्रों के साथ षोडशोपचार पूजा करें।
  • इसके उपरांत देवी मां को स्मरण करते हुए प्रार्थना करें कि हे मां, मैंने यह पूजा अपनी क्षमता के अनुसार संपूर्ण की है। कृप्या प्रस्थान के पूर्व मेरी यह पूजा स्वीकार करें।
  • पूजन संपन्न होने के बाद प्रणाम करें।
  • हारेणु तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला। अपराजिता भ्रदरता करोतु विजयं मम।। इस मंत्र के साथ पूजा का विधिवत विसर्जन करें। यह याद रखें कि अपराजिता पूजा विजयादशमी के त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण भाग है।

पूजाओं एवं अनुष्ठानों का प्रावधान

  • सूर्यास्त के बाद आकाश में जब तारें दिखाई देने लगें तो उस अवधि को विजय मुहूर्त कहते हैं। इस अवधि में कोई भी पूजा या शुभ कार्य करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। लोक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण को हराने के लिए युद्ध का प्रारंभ इसी विजय मुहूर्त में किया था। यह भी कहा जाता है कि शमी नामक वृक्ष ने इसी मुहूर्त में अर्जुन के गांडीव नामक धनुष का रुप लिया था।
  • दशहरे का दिन वर्ष के सर्वाधिक पवित्रतम दिनों में से एक माना जाता है। वर्ष के सभी शुभ मुहूर्तों में से एक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दश्मी, वैशाख शुक्ल तृतीय एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा मुहूर्त यानी साढ़े तीन मुहूर्तों से में से एक है। यह काल किसी भी नए कार्य की शुरुआत के लिए सबसे बेहतर काल है। यह याद रहे कि कुछ चुनिंदा मुहूर्त किसी विशेष अनुष्ठान के लिए भी हो सकते हैं।
  • सैनिक, क्षत्रिय, योद्धा समेत वैसे सभी लोग जो शस्त्रधारी होते हैं, इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। इसलिए विजयादशमी को आयुध पूजा या शस्त्र पूजा के तौर पर जाना जाता है। विजयादशमी को शक्ति पूजा के त्योहार के रुप में भी मनाया जाता है। इस दिन शमी पूजन भी होता है। पुरातन काल के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो रजवाड़ों में इसे सबसे बड़ा त्योहार माना जाता था।
  • ब्राह्मण वर्ग के लोग इस दिन मां सरस्वती की आराधना करते हैं।
  • वैश्य समाज के लोग इस दिन बहीखाते की पूजा करते हैं।
  • देश के कई हिस्सों में होने वाले नवरात्रि रामलीला का समापन भी विजयादशमी के दिन होता है।
  • विजयादशमी के दिन ही रावण, मेघनाद एवं कुंभकर्ण का पुतला जलाकर भगवान श्रीराम के विजय का जश्न मनाया जाता है।
  • ऐसी मान्यता है कि मां भगवती जगदंबा के अपराजिता स्त्रोत का पाठ करना बहुत ही पवित्र साधना है।
  • देश के उन हिस्सों में जहां दशहरे के मौके पर देवी दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती है, विजयादशमी के दिन उनका विसर्जन कर दिया जाता है।
  • पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वी यूपी, झारखंड आदि राज्यों में विजयादशमी को दुर्गा पूजा के रुप में बेहद भव्य तरीके से मनाया जाता है।
  • इस दिन कई परिवारों में कुंवारी कन्याओं को माता का स्वरुप मानकर भोजन कराया जाता है।

दशहरा की पौराणिक मान्यताएँ

जातक कथाओं के अनुसार इस त्योहार का नाम दशहरा इसलिए पड़ा कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने दस सिरों वाले अत्याचारी लंकापति रावण का वध किया था। उसी समय से दस सिरों वाले रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है। रावण के दस सिरों को अपने अंदर के काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता जैसे दुगुर्णों के प्रतीक के तौर पर भी माना जाता है। विजयादशमी यह संदेश देता है कि हम भी अपने अंदर से इन विकारों को सदा के लिए नष्ट करें।

महाभारत काल की कथाओं के अनुसार जब दुर्योधन ने जुए में पांडवां को हरा दिया था तब शर्त के मुताबिक पांडवों को 12 सालों तक वनवास के तहत जंगल-जंगल भटकना पड़ा। इस दौरान एक साल तक उन्हें अज्ञातवास में भी रहना पड़ा। अज्ञातवास के दौरान

पूरी तरह से गुप्त रुप से रहना पड़ता है। अगर इस अज्ञातवास के दौरान कोई भी व्यक्ति उन्हें पहचान लेता तो दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन झेलने का नियम था। इस वजह से अर्जुन ने अपने धनुष गांडीव को एक साल के लिए शमी नामक पेड़ पर छिपा दिया था और राजा विराट के लिए एक ब्रिहन्नला का फर्जी वेश धारण कर लिया था। एक समय राजा के पुत्र

की गाय संकट में पड़ गई तो उसने रुप बदले अर्जुन से मदद की गुहार लगाई। अर्जुन ने उसी शमी के पेड़ के अंदर अपना गांडीव निकालकर दुश्मनों को परास्त किया था। यह दिन विजयादशमी का था।

अन्य कथाओं के अनुसार जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई के लिए अपनी यात्रा का श्रीगणेश किया तो शमी के वृक्ष ने ही उनके विजयी होने की अग्रिम भविष्यवाणी की थी।

अगर आप असल में दशहरा त्योहार का स्वाद लेना चाहते हैं तो कर्नाटक अथवा कोलकाता का रुख करें। मैसूर का दशहरा बेहद बृहद पैमाने पर मनाया जाता है, जो पूरे दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में भी दशहरा के दस दिन ऐसा एहसास होता है कि सचमुच मां दुर्गा भूलोक पर आ गई हो। हर ओर शुद्धता और आध्यात्मिक माहौल दिखता है।

हमारी ओर से विजयदशमी की आपको हार्दिक शुभकामनाएं।