वर्ष 2019 में होली का त्योहार 21 मार्च को मनाया जाने वाला है। होली का नाम आते ही हर किसी के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है। रंगों का, खुशियों का, शरारतों का यह त्योहार हर किसी को पसंद आता है। हिंदू पंचांगों के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को होली मनाया जाता है। यदि प्रतिपदा दो दिन पड़ती हो तो प्रथम दिन को धुलंडी के तौर पर मनाते हैं, जिसे वसंत उत्सव या होली कहते हैं। होली का त्योहार बसंत ऋतु के आगमन को समर्पित होता है। नवीन ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए ही होली का त्यौहार मनाया जाता है। बसंत ऋतु में प्रकृति में चारो ओर फैले रंगों की अद्भुत छटा को रंगों से खेल कर होली के रुप में प्रदर्शित किया जाता है। होली को पंजाब में होला महल्ला, हरियाणा, दिल्ली एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धुलंडी कहा जाता है।
होली का त्योहार तो सभी मनाते हैं लेकिन क्या आपने कभी इसके पीछे का इतिहास जानने की कोशिश की है। वैदिक कथाओं में होली का वर्णन काफी प्राचीन माना जाता है। पुरातन विजयनगर रियासत की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी की तस्वीर हासिल हुई है जिसमें होली पर्व को उकेरा गया है। उससे पता चलता है कि होली 16वीं शताब्दी से भी पुराना त्योहार है तो वहीं विंध्य पर्वत माला के रामगढ़ में मिले ईसा से 300 साल पुराने अभिलेख में भी होली का उल्लेख मिला है। इसी से होली की प्रमाणिकता और पौराणिकता का अनुमान लगाया जा सकता है।
इतिहास में, पुराणों में, जातक कथाओं में होली से जुड़ी अनेक कहानियां पाई जाती है। इनमें हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद की कहानी, राधा कृष्ण की लीलाओं की कहानी और राक्षसी धुण्डी की कहानी मुख्य हैं। वैसे भक्त प्रह्लाद की कथा ज्यादा प्रचलित है।
जातक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप एक दैत्य था। वह ईश्वर विरोधी था। उसका एक पुत्र था प्रह्लाद, जो पिता के विपरीत घोर आस्तिक था। प्रह्लाद विष्णु भक्त था। हिरण्यकश्यप को यह बात जरा भी पसंद नहीं थी कि उसका पुत्र भगवान विष्णु का भक्त हो। प्रारंभ में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को विष्णु की भक्ति से अलग करने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देने की कोशिश की। हर तरह से विमुख करने की कोशिश की लेकिन समय जैसे जैसे निकल रहा था, प्रह्लाद की भक्ति भावना त्यों-त्यों आगे बढ़ रही थीं। हिरण्यकश्यप परेशान हो चुका था। थकहार कर उसने प्रह्लाद को जान से मारने का कार्य अपनी बहन होलिका को सौंप दिया। होलिका को यह वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर गई लेकिन भगवान विष्णु की असीम कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिका उसी अग्नि कुंड में जलकर भस्म हो गई।
भावना, भक्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण की जीत की खुशी में तभी से होली मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है और अगले ही दिन होली का त्योहार मनाया जाता है। होली को कई जगहों पर रंग भरी होली भी कहा जाता है।
रंगवाली होली भगवान कृष्ण और राधा के निष्छल प्रेम की याद में भी मनायी जाती है। द्वापर युग की कथाओं के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण नन्हें से बालक थे तो उन्होंने अपने सांवले रंग को देख कर यशोदा मैया से पूछा कि वे ऐसे क्यों हैं, वे राधा की तरह गोरे क्यों नहीं है ! मैया यशोदा ने बाल मनुहार में कन्हैया को कह दिया कि राधा के चेहरे पर रंग लगा दो तो उनका भी चेहरा तुम्हारी तरह ही हो जाएगा। अब नटखट कन्हैया कहां मानने वाले थें। उन्होंने राधा और गोपियों संग अलग-अलग रंगों से होली खेलनी शुरु कर दी और सबको अपने रंग में रंग दिया। उसी समय से रंगों का त्योहार होली मनाने की परंपरा शुरु हो गई.
यह भी कथा प्रचलित है कि भगवान शंकर के श्राप के कारण पृथ्वी के लोगों ने धुंडी नामक राक्षसी को भगा दिया था जिसकी याद में यह त्योहार मनाया जाता है। यह कहानी हरियाणा में ज्यादा प्रचलित है।
वैसे तो होली पूरे भारत में मनाई जाती है लेकिन अलग-अलग इलाकों में इसके अलग अलग रंग देखने को मिलते हैं। बात करें मध्य प्रदेश की तो यहां के मालवा इलाके में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है जो होली के मुख्य त्योहार से भी ज्यादा जोरशोर और उल्लास के साथ आयोजित की जाती है.
ब्रज क्षेत्र की होली देश भर में बेहद लोकप्रिय है। विशेष तौर पर बरसाना की लट्ठमार होली भला कोई कैसे भूल सकता है। मथुरा और वृंदावन में 15 दिनों तक होली की छटा छाई रहती है। हरियाणा में होली के दौरान देवर भाभी के छेड़छाड़ का प्रचलन है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल और अबीर से होली खेलने की पंरपरा है। बिहार में होली के 15 दिन पहले से फगुआ लोकगीत गाने और गुलाल लगाने की पंरपरा है। होली में छत्तीसगढ़ के लोकगीत भी काफी लोकप्रिय है। दक्षिण गुजरात समेत देश भर में आदिवासियों के लिए होली बहुत बड़ा त्योहार होता है।
मध्य प्रदेश के मालवांचल में भगोरिया के रुप में इसे मनाया जाता है। सिक्ख परंपरा के मुताबिक होली को वीरता के त्योहार के रुप में मनाया जाता है। पंजाब में होला महल्ला के तौर पर होली को मनाया जाता है। होली ही एक ऐसा त्योहार है जिसमें धर्म, जाति, वर्ग, लिंग आदि हर तरह के भेद मिट जाते हैं और प्रेम के रंग दिखाई देते हैं। यही एक त्योहार है जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं। 2020 की गणना के अनुसार इस वर्ष होली 21 मार्च गुरुवार को है।
होलिका दहन के बाद अगले दिन सुबह सुबह अपने प्रियजनों को रंग लगाकर उन्हें त्योहार की शुभकामनाएं दें। घर पर तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनवाएं। खुद भी खाएं और औरों को खिलाएं। सभी मित्रों, पड़ोसियों के घर जाकर उन्हें होली की बधाइयां दें।
आप सब को हमारी ओर से होली की हार्दिक शुभकामनाएं।