2019 में जन्माष्टमी 24 अगस्त, शनिवार को है। हिंदू धर्म के आराध्य देवों में भगवान श्रीकृष्ण का महत्वपूर्ण स्थान है। श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव ही जन्माष्टमी के त्योहार के तौर पर मनाया जाता है। असुरराज कंस के कारागार में देवकी एवं वासुदेव की आठवीं संतान के रुप में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। जिस समय श्रीकृष्ण का जन्म हो रहा था, उस वक्त अर्धरात्रि थी। चंद्रमा का उदय हो रहा था। नक्षत्र रोहिणी था। यही कारण है इस दिन जन्माष्टमी मनाया जाता है।
निशीथ पूजा मुहूर्त : | 24:01:33 से 24:45:46 तक |
अवधि : | 0 घंटे 44 मिनट |
जन्माष्टमी पारणा मुहूर्त : | 05:54:46 के बाद 25th, अगस्त को |
सूचना: यह मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है। जानें अपने शहर का मुहूर्त।
वैदिक मान्यताओं के अनुसार यदि अष्टमी पहले ही दिन आधी रात को विद्यमान हो तो जन्माष्टमी व्रत पहले दिन किया जाता है।
यदि अष्टमी केवल दूसरे दिन आधी रात को व्याप्त हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।
अगर अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्ध रात्रि में रोहिणी नक्षत्र का योग एक ही दिन आ रहा हो तो जन्माष्टमी व्रत रोहिणी नक्षत्र से युक्त दिन के समय ही किया जाता है।
यदि अष्टमी दोनों दिन आधी रात को मौजूद हो और इन दोनों दिनों की अर्धरात्रि में हिणी नक्षत्र व्याप्त रहे तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन ही किया जाना चाहिए।
अगर अष्टमी दोनों दिनों को आधी रात को व्याप्त हो और उस अर्ध रात्रि में रोहिणी नक्षत्र का योग नहीं बन रहा हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे ही दिन किया जाना चाहिए।
अगर दोनों ही दिन आधी रात को अष्टमी तिथि व्याप्त न हो तो प्रत्येक स्थिति में जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन ही मनाया जाएगा।
नोट : जानकारी के लिए बता दिया जाए कि उपरोक्त वर्णित मुहूर्त स्मार्त मत के अनुसार दिए गए हैं। वैष्णव मत के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अगले दिन मनाए जाएंगें। जैसा कि आपको पता है कि हिंदू धर्म विविधता के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि वैष्णव और
स्मार्त मत के लोग कई त्योहारों को अलग अलग नियमों और रिवाजों के अनुसार मनाते हैं।
हिंदू मतानुसार वैष्णव उन लोगों को कहा जाता है जिन्होंने वैष्णव संप्रदाय में बताए गए नियमों के मुताबिक पूर्ण रुप से दीक्षा ग्रहण की है। ये लोग शाकाहारी होते हैं और गले में कंठी माला धारण करते हैं। मस्तक पर विष्णुचरण का चिन्ह यानी तिलक लगाते हैं। इन वैष्णव लोगों के अलावा बाकी समस्त हिंदू स्मार्त माने जाते हैं।
साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिन लोगों ने नियमपूर्वक वैष्णव धर्म की दीक्षा ग्रहण नहीं की है, वो सभी स्मार्त हैं.
सर्वप्रथम यह याद रखें कि इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारण से व्रत पूरा किया जाता है।
व्रत करने वाले जातकों को चाहिए कि अष्टमी से एक दिन पूर्व यान सप्तमी को हल्का एवं सात्विक भोजन करें।
व्रत के दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत होकर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। सभी देवी देवताओं को नमन करें।
हाथ में जल, पुष्प और फल लेकर संकल्प धारण करें। मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान कर माता देवकी जी के लिए प्रसूती गृह का निमार्ण करें। इसी प्रसूती गृह में सुंदर व आरामदायक गद्दे बिछाएं और उस पर शुभ कलश की स्थापना करें।
ऐसी मूर्ति या चित्र की स्थापना करें जिसमें माता देवकी जी भगवान श्रीकृष्ण को दुग्धपान करा रहीं हो। पूजन के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के साथ माता देवकी जी, वासुदेव जी, बलभद्र जी, नंद जी, यशोदा मैया और लक्ष्मी माता सबका नाम क्रमशः लें।
विधान के मुताबिक यह व्रत रात 12 बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अन्न का प्रयोग नहीं किया जाता। फलाहार के रुप में मावे की बर्फी, सिंघाड़े के आटे का हलवा और कुट्टू के आटे की पकौड़ी का सेवन किया जाता है।
यह कथा द्वापर युग के अंत की है। मथुरा में उग्रसेन नामक राजा का राज्य था। उग्रसेन के बेटे का नाम कंस था। कंस बचपन से ही अत्याचारी प्रवृति का था। उसने अपने पिता उग्रसेन को जबरन राजगद्दी से उतार कर कारागार में डाल दिया और स्वयं राजा बन बैठा। इसी बीच कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ तय हो गया। विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया। देवकी की विदाई की परंपरा चल रही थी। कंस जब अपनी बहन देवकी को विदा करने रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि मूर्ख कंस, जिस खुशी के साथ तू अपनी बहन देवकी को विदा करने जा रहा था, उसी का आठवां पुत्र तेरा सर्वनाश करेगा, वही तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी सुन कर कंस क्रोधित हो गया। उसने वहीं देवकी का वध करने की ठान ली। उसके मन में विचार आया कि न देवकी होगी और न इसकी कोई संतान होगी। वासुदेव जी ने वहां बुद्धिमता का परिचय देते हुए कहा कि कंस, तुम्हें देवकी से कोई भय नहीं है। तुम्हें खतरा तो इसकी आठवीं सतान से है। मैं आठवीं संतान तुम्हें सौंप दूंगा, किन्तु तुम देवकी का वध न करो। कंस यह मान गया लेकिन उसने देवकी और वासुदेव को भी कारागार में डाल दिया।
इसके बाद नारद मुनि वहां पहुंच गए और कंस से पूछा कि यह पता कैसे चलेगा कि आठवां गर्भ कौन सा होगा। गिनती प्रथम से प्रारंभ होगी या अंतिम से। कंस के मन में यह बात बैठ गई और उसने नारद के परामर्श पर निर्दयता पूर्वक देवकी की कोख से पैदा होने वाले
समस्त संतानों को एक-एक कर मार डाला। इसके बाद भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही कारागार
की उस काली कोठरी में तेज प्रकाश फैल गया। देवकी और वासुदेव के सामने भगवान चतुर्भुज कमल के फूल पर विराजमान होकर शंख, चक्र एवं गदा समेत प्रकट हुए और कहा कि अब मैं बालक का रुप धारण कर रहा हूं। वासुदेव तुम मुझे तत्काल गोकुल में नंदजी के यहां पहुंचा दो और वहां जन्मी अभी-अभी एक कन्या को लेकर कंस को सौंप दो।
वासुदेव जी ने ऐसा ही किया। उन्होंने नवजात श्रीकृष्ण को गोकुल पहुंचा दिया और वहां से कन्या को उठा कर ले आए और कन्या को कंस के हवाले कर दिया। हमेशा की तरह कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो कन्या कंस के हाथों से छूट गई और आकाश में उड़ गई। कन्या ने देवी का रुप धारण कर लिया और कहा कि कंस, मुझे मारने से क्या लाभ होगा तुझे। तेरा संहार करने वाला तो गोकुल पहुंच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस भौंचक रह गया। कंस गोकुल के सभी बच्चों को मारने लगा लेकिन श्रीकृष्ण को मारने में असफल रहा। उसने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए कई दैत्य भेजे लेकिन सब के सब स्वयं मारे गए। श्रीकृष्ण ने कई कौतुक रचाए और अपनी अलौकिक माया से कंस का संहार किया। इसके बाद उन्होंने अपने नाना और कंस के पिता उग्रसेन को पुनः राजगद्दी पर बैठाया.
जन्माष्टमी का त्योहार खासा उमंग और उल्लास से भरा होता है। इस दिन देश के समस्त मंदिर सजाए जाते हैं और उनका श्रृंगार किया जाता है। घरों में भी भगवान श्रीकृष्ण की पालकी सजाई जाती है। लोगों द्वारा व्रत रखे जाते हैं और श्रीकृष्ण के गीत गाए जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का झूला सजाया जाता है। उन्हें झूला-झूलाया जाता है। बच्चों को श्रीकृष्ण की तरह सजाया जाता है। रात के 12 बजे तक व्रत किए जाते हैं। इसके बाद शंखों और घंटों की आवाज गूंजनी शुरु हो जाती है। श्रीकृष्ण की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है।
जन्माष्टमी की आपको हार्दिक शुभकामनाएं। हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।