कर्णवेध संस्कार हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। भारतवर्ष सदैव से ही प्राचीन भारतीय संस्कृति के लिए विश्व पटल पर अमिट छाप रखता है। क्योंकि भारत मान्यताओं और संस्कारों का देश है। वैदिक हिंदू धर्म में कुल मिलाकर 16 संस्कार मुख्य रूप से माने गए हैं जिन्हें षोडश संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। ये सभी संस्कार मानव जीवन पर अमिट छाप छोड़ते हैं। मुंडन मुहूर्त, नामकरण मुहूर्त, गृह प्रवेश मुहूर्त आदि काफी प्रचलित संस्कार हैं और इन्ही संस्कारों में से एक है कर्णवेध संस्कार, जो मनुष्य के सुखी और सार्थक जीवन को सुनिश्चित करता है। इस संस्कार को कुछ लोग कान/कर्ण छेदन संस्कार के नाम से भी जानते हैं। इस लेख के माध्यम से हमने प्रयास किया है कि आपको वर्ष 2019 के अति शुभ कर्णवेध मुहूर्त के बारे में बताएं और इस मुहूर्त के महत्व और उपयोगिता के बारे में जानकारी दे सके।
कर्णवेध मुहूर्त 2019 | ||||
दिनांक | वार | तिथि | नक्षत्र | समय |
02 जनवरी 2019 | बुधवार | द्वादशी | विशाखा नक्षत्र | 10:20 - 13 :13 14 :48 - 18 :58 |
03 जनवरी 2019 | गुरुवार | त्रयोदशी | अनुराधा नक्षत्र | 08 :34 - 11 :44 |
09 जनवरी 2019 | बुधवार | तृतीया | धनिष्ठा नक्षत्र | 07 :46 - 09 :53 11 :20 - 16 :16 |
13 जनवरी 2019 | रविवार | सप्तमी | उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र | 14 :05 - 18 :15 |
14 जनवरी 2019 | सोमवार | अष्टमी | रेवती नक्षत्र | 15 :56 - 18 :11 |
18 जनवरी 2019 | शुक्रवार | द्वादशी | रोहिणी नक्षत्र | 13 :45 - 15 :41 17 :55 - 19 :55 |
19 जनवरी 2019 | शनिवार | त्रयोदशी | मृगशिरा नक्षत्र | 07 :46 - 10 :41 |
21 जनवरी 2019 | सोमवार | पूर्णिमा | पुष्य नक्षत्र | 07 :45 - 11 :58 13 :33 - 20 :04 |
25 जनवरी 2019 | शुक्रवार | पंंचमी | उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र | 17 :28 - 18 :48 |
26 जनवरी 2019 | शनिवार | षष्टी | हस्ता नक्षत्र | 07 :43 - 08 :46 10 :13 - 15 :09 |
27 जनवरी 2019 | रविवार | सप्तमी | चित्रा नक्षत्र | 07 :43 - 10 :10 11 :34 - 15 :05 |
30 जनवरी 2019 | बुधवार | दशमी | अनुराधा नक्षत्र | 17 :08 - 19 :28 |
06 फरवरी 2019 | बुधवार | द्वितीया | धनिष्ठा नक्षत्र | 07 :38 - 09 :30 |
10 फरवरी 2019 | रविवार | पंंचमी | रेवती नक्षत्र | 07 :35 - 10 :39 12 :15 - 18 :45 |
11 फरवरी 2019 | सोमवार | षष्टी | अश्विनी नक्षत्र | 07 :43 - 12 :11 14 :06 - 18 :41 |
15 फरवरी 2019 | शुक्रवार | दशमी | मृगशिरा नक्षत्र | 08 :55 - 16 :05 |
17 फरवरी 2019 | रविवार | द्वादशी | पुनर्वसू नक्षत्र | 07 :29 - 08 :47 10 :12 - 18 :17 |
23 फरवरी 2019 | शनिवार | चतुर्थी | चित्रा नक्षत्र | 09 :48 - 15 :34 17 :54 - 19 :36 |
03 मार्च 2019 | रविवार | द्वादशी | उत्तराषाढ़ा नक्षत्र | 10 :52 - 12 :48 15 :02 - 19 :40 |
04 मार्च 2019 | सोमवार | त्रयोदशी | श्रवण नक्षत्र | 07 :48 - 12 :44 14 :58 - 17 :19 |
09 मार्च 2019 | शनिवार | तृतीया | रेवती नक्षत्र | 07 :28 - 08 :53 10 :28 - 16 :59 |
21 मार्च 2019 | गुरुवार | पूर्णिमा | उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र | 16 :12 - 18 :29 |
22 मार्च 2019 | शुक्रवार | द्वितीया | हस्ता नक्षत्र | 06 :54 - 11 :33 13 :47 - 18 :25 |
23 मार्च 2019 | शनिवार | तृतीया | चित्रा नक्षत्र | 07 :58 - 11 :29 |
25 मार्च 2019 | सोमवार | पंंचमी | विशाखा नक्षत्र | 07 :32 - 07 :50 09 :26 - 15 :56 |
31 मार्च 2019 | रविवार | एकादशी | श्रवण नक्षत्र | 07 :27 - 10 :57 13 :12 - 19 :16 |
01 अप्रैल 2019 | सोमवार | द्वादशी | धनिष्ठा नक्षत्र | 07 :23 - 13 :08 15 :28 - 19 :53 |
05 अप्रैल 2019 | शुक्रवार | पूर्णिमा | उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र | 17 :30 - 19 :46 |
06 अप्रैल 2019 | शनिवार | प्रतिपदा | रेवती नक्षत्र | 10 :34 - 17 :26 |
07 अप्रैल 2019 | रविवार | द्वितीया | अश्विनी नक्षत्र | 06 :59 - 08 :34 |
10 अप्रैल 2019 | बुधवार | पंंचमी | रोहिणी नक्षत्र | 12 :33 - 19 :27 |
11 अप्रैल 2019 | गुरुवार | षष्टी | मृगशिरा नक्षत्र | 06 :43 - 12 :29 |
13 अप्रैल 2019 | शनिवार | अष्टमी | पुनर्वसू नक्षत्र | 08 :11 - 12 :21 |
19 अप्रैल 2019 | शुक्रवार | पूर्णिमा | चित्रा नक्षत्र | 06 :31 - 11 :57 14 :18 - 18 :51 |
27 अप्रैल 2019 | शनिवार | अष्टमी | श्रवण नक्षत्र | 07 :16 - 09 :11 11 :26 - 18 :20 |
2 मई 2019 | गुरुवार | त्रयोदशी | उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र | 15 :44 - 20 :20 |
9 मई 2019 | गुरुवार | पंंचमी | आर्द्रा नक्षत्र | 17 :33 - 19 :29 |
10 मई 2019 | शुक्रवार | षष्टी | पुनर्वसू नक्षत्र | 06 :25 - 11 :55 15 :12 - 19 :35 |
11 मई 2019 | शनिवार | सप्तमी | पुष्य नक्षत्र | 06 :21 - 12 :51 |
15 मई 2019 | बुधवार | एकादशी | उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र | 12 :35 - 17 :09 |
16 मई 2019 | गुरुवार | द्वादशी | हस्ता नक्षत्र | 06 :11 - 07 :57 10 :11 - 17 :05 |
19 मई 2019 | रविवार | प्रतिपदा | अनुराधा नक्षत्र | 07 :45 - 12 :20 14 :37 - 19 :13 |
24 मई 2019 | शुक्रवार | षष्टी | उत्तराषाढ़ा नक्षत्र | 09 :40 - 16 :34 |
26 मई 2019 | रविवार | सप्तमी | धनिष्ठा नक्षत्र | 07 :17 - 09 :32 11 :52 - 14 :09 |
30 मई 2019 | गुरुवार | एकादशी | रेवती नक्षत्र | 07 :02 - 11 :36 13 :54 - 18 :30 |
31 मई 2019 | शुक्रवार | द्वादशी | अश्विनी नक्षत्र | 06 :58 - 13 :50 16 :06 - 18 :26 |
06 जून 2019 | गुरुवार | तृतीया | पुनर्वसू नक्षत्र | 06 :34 - 08 :49 |
07 जून 2019 | शुक्रवार | चतुर्थी | पुष्य नक्षत्र | 08 :45 - 11 :05 13 :22 :18 :57 |
12 जून 2019 | बुधवार | दशमी | हस्ता नक्षत्र | 08 :25 - 15 :19 17 :38 - 18 :57 |
15 जून 2019 | शनिवार | त्रयोदशी | विशाखा नक्षत्र | 12 :51 - 15 :07 |
22 जून 2019 | शनिवार | पंंचमी | धनिष्ठा नक्षत्र | 07 :46 - 16 :59 |
27 जून 2019 | गुरुवार | नवमी | रेवती नक्षत्र | 07 :26 - 12 :04 14 :20 - 18 :45 |
28 जून 2019 | शुक्रवार | दशमी | अश्विनी नक्षत्र | 07 :22 - 09 :42 |
03 जुलाई 2019 | बुधवार | प्रतिपदा | आर्द्रा नक्षत्र | 09 :23 - 16 :16 |
04 जुलाई 2019 | गुरुवार | द्वितीया | पुष्य नक्षत्र | 06 :59 - 09 :19 11 :36 - 18 :31 |
13 जुलाई 2019 | शनिवार | द्वादशी | अनुराधा नक्षत्र | 06 :23 - 08 :43 11 :01 - 17 :55 |
19 जुलाई 2019 | शुक्रवार | द्वितीया | धनिष्ठा नक्षत्र | 07 :25 - 12 :53 15 :13 - 19 :36 |
24 जुलाई 2019 | बुधवार | सप्तमी | रेवती नक्षत्र | 06 :09 - 08 :00 10 :18 - 18 :35 |
25 जुलाई 2019 | गुरुवार | अष्टमी | अश्विनी नक्षत्र | 07 :17 - 10 :14 12 :30 - 18 :08 |
29 जुलाई 2019 | सोमवार | द्वादशी | मृगशिरा नक्षत्र | 07 :41 - 14 :34 16 :52 - 18 :51 |
01 अगस्त 2019 | गुरुवार | पूर्णिमा | पुष्य नक्षत्र | 09 :46 - 14 :22 |
05 अगस्त 2019 | सोमवार | पंंचमी | हस्ता नक्षत्र | 07 :13 - 11 :47 14 :06 - 18 :29 |
09 अगस्त 2019 | शुक्रवार | नवमी | अनुराधा नक्षत्र | 11 :31 - 16 :09 |
15 अगस्त 2019 | गुरुवार | पूर्णिमा | श्रवण नक्षत्र | 06 :34 - 11 :07 13 :27 - 18 :29 |
16 अगस्त 2019 | शुक्रवार | प्रतिपदा | धनिष्ठा नक्षत्र | 07 :39 - 13 :23 |
21 अगस्त 2019 | बुधवार | षष्टी | अश्विनी नक्षत्र | 06 :24 - 08 :27 10 :44 - 17 :26 |
25 अगस्त 2019 | रविवार | नवमी | मृगशिरा नक्षत्र | 12 :48 - 18 :52 |
28 अगस्त 2019 | बुधवार | त्रयोदशी | पुष्य नक्षत्र | 08 :00 - 14 :54 16 :58 - 18 :41 |
1 सितम्बर 2019 | रविवार | द्वितीया | उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र | 12 :20 - 18 :25 |
5 सितम्बर 2019 | गुरुवार | सप्तमी | अनुराधा नक्षत्र | 17 :28 - 14 :23 16 :27 - 18 :09 |
11 सितम्बर 2019 | बुधवार | त्रयोदशी | श्रवण नक्षत्र | 07 :05 - 09 :21 11 :41 - 17 :46 |
29 सितम्बर 2019 | रविवार | प्रतिपदा | हस्ता नक्षत्र | 06 :44 - 08 :10 10 :30 - 16 :35 18 :02 - 19 :27 |
30 सितम्बर 2019 | सोमवार | द्वितीया | चित्रा नक्षत्र | 06 :58 - 10 :26 12 :45 - 17 :58 |
2 अक्टूबर 2019 | बुधवार | चतुर्थी | विशाखा नक्षत्र | 14 :41 - 19 :15 |
3 अक्टूबर 2019 | गुरुवार | पंंचमी | अनुराधा नक्षत्र | 06 :46 - 12 :33 |
13 अक्टूबर 2019 | रविवार | पूर्णिमा | उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र | 15 :40 - 18 :32 |
14 अक्टूबर 2019 | सोमवार | प्रतिपदा | रेवती नक्षत्र | 17 :11 - 13 :54 15 :36 - 18 :28 |
19 अक्टूबर 2019 | शनिवार | पंंचमी | मृगशिरा नक्षत्र | 06 :55 - 09 :11 11 :30 - 16 :44 |
21 अक्टूबर 2019 | सोमवार | सप्तमी | पुनर्वसू नक्षत्र | 07 :14 - 09 :03 11 :22 - 18 :01 |
26 अक्टूबर 2019 | शनिवार | त्रयोदशी | उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र | 11 :02 - 14 :49 16 :16 - 17 :41 |
30 अक्टूबर 2019 | बुधवार | तृतीया | अनुराधा नक्षत्र | 07 :02 - 10 :47 12 :51 - 17 :25 |
4 नवंबर 2019 | सोमवार | अष्टमी | श्रवण नक्षत्र | 17 :06 - 1841 |
10 नवंबर 2019 | रविवार | त्रयोदशी | रेवती नक्षत्र | 07 :45 - 10 :03 12 :07 - 16 :42 |
15 नवंबर 2019 | शुक्रवार | तृतीया | मृगशिरा नक्षत्र | 07 :25 - 09 :44 |
17 नवंबर 2019 | रविवार | पंंचमी | पुनर्वसू नक्षत्र | 09 :36 - 14 :50 16 :15 - 18 :52 |
18 नवंबर 2019 | सोमवार | षष्टी | पुष्य नक्षत्र | 07 :17 - 09 :32 11 :36 - 16 :11 |
22 नवंबर 2019 | शुक्रवार | दशमी | उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र | 17 :30 - 19 :26 |
23 नवंबर 2019 | शनिवार | द्वादशी | हस्ता नक्षत्र | 07 :21 - 12 :59 14 :26 - 19 :22 |
24 नवंबर 2019 | रविवार | त्रयोदशी | चित्रा नक्षत्र | 09 :08 - 14 :22 |
27 नवंबर 2019 | बुधवार | प्रतिपदा | अनुराधा नक्षत्र | 07 :24 - 08 :57 |
01 दिसंबर 2019 | रविवार | पंंचमी | उत्तराषाढ़ा नक्षत्र | 10 :45 - 12 :27 13 :55 - 18 :50 |
02 दिसंबर 2019 | सोमवार | षष्टी | श्रवण नक्षत्र | 07 :28 - 12 :23 13 :51 - 18 :46 |
07 दिसंबर 2019 | शनिवार | एकादशी | रेवती नक्षत्र | 07 :32 - 08 :17 10 :21 - 14 :56 16 :31 - 18 :27 |
08 दिसंबर 2019 | रविवार | एकादशी | अश्विनी नक्षत्र | 12 :00 - 16 :27 |
12 दिसंबर 2019 | गुरुवार | पूर्णिमा | मृगशिरा नक्षत्र | 07 :35 - 11 :44 13 :11 - 18 :07 |
14 दिसंबर 2019 | शनिवार | द्वितीया | पुनर्वसू नक्षत्र | 07 :50 - 13 :04 14 :28 - 20 :14 |
29 दिसंबर 2019 | रविवार | तृतीया | श्रवण नक्षत्र | 07 :44 - 10 :37 12 :05 - 13 :29 |
30 दिसंबर 2019 | सोमवार | चतुर्थी | धनिष्ठा नक्षत्र | 15 :01 - 19 :11 |
कर्णवेध मुहूर्त अर्थात् कान छिदवाने का मुहूर्त। आपने अपने आसपास भी देखा होगा कि हिंदू लोग एक वक्त के बाद अपने बच्चों के कान छिदवाते हैं। कर्णवेध को 16 संस्कारों में से सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में मुहूर्त को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म की यह मान्यता है कि बच्चे के कान छिदवाने से उसकी दिनचर्या तो कुशल चलती ही है साथ ही उसके जीवन से सभी नकारात्मक प्रभाव भी दूर होते हैं। कर्णवेध में बच्चे के कान के निचले हिस्से में वेधन किया जाता है। इसे आसान भाषा में कान छिदवाना भी कहते हैं। इस संस्कार के बाद बच्चे का कुछ दिनों तक कान में कुंडल पहनना शुभ माना जाता है। हिन्दू धर्म या फिर सनातन धर्म को मानने वाले लोग अपने बच्चे के जन्म से तीसरे और पांचवें वर्ष के बीच में इस संस्कार को करते हैं। हालांकि अब लोग विविध शास्त्रों को मानने के बजाय मनमाने ढंग से कर्ण वेध करवाने लगे है और आधुनिकता के चलते इसके लिए कोई मुहूर्त भी नहीं निकालते तथा मनमुताबिक इस संस्कार को करवाने लगे हैं। कर्ण छेदन अगर सही मुहूर्त पर हो तो इसे भविष्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। कर्ण छेदन के पश्चात् कान में सोने की बाली पहनायी जाती है क्यूंकि सोने को शुद्ध धातु माना जाता है। कुछ लोग चाँदी की बाली भी पहनते हैं।
हमारे देश में हर शुभ काम को करने से पहले शुभ मुहूर्त देखा जाता है। ज्योतिशास्त्रियों और कई अध्ययनों में भी इस बात को मान्यता मिल चुकी है कि ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति की गणना करके ही कर्णवेध मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है। इस संस्कार को करते वक्त हवन करना अनिवार्य माना गया है। ऐसी मान्यता है कि कर्णवेध यज्ञ व हवन के दौरान उठने वाला धुआं वातावरण को शुद्ध करता है और सभी नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति दिलाता है। हिन्दू समाज के प्रख्यात पंडितों और जानकारों का कहना है कि कणवेध संस्कार को सही मुहूर्त में करने से बच्चे की मानसिक चंचलता और अन्य विकार तो दूर होते ही हैं साथ ही इससे बच्चों की बौद्धिक शक्ति में वृद्धि होती है और शरीर में सकारात्मक भावों का संचार होता है। यही कारण है कि लोग अपने बच्चों के कान छिदवाने के लिए शुभ वक्त का इंतजार करते हैं।
भारतीय हिंदू समाज में जितने भी संस्कार हैं उनका अपना अपना महत्व है। कर्णवेध संस्कार कराने के पीछे का कारण बच्चे को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और सक्षम बनाना है। जिन बच्चों का बचपन में ही कर्णवेध हो जाता है उन बच्चों में हक्लापन, बधिरपन और अन्य मानसिक विचार दूर होते हैं। इन अवसरों को और भी शुभ और संपन्न बनाने के लिए हम मुहूर्त की तलाश करते हैं। ऐसे में हम इन कार्यों की शुरुआत से पूर्व शुभ मुहूर्त के लिए ज्योतिषी या किसी पंडित की सलाह लेते हैं। वैसे तो कर्णवेध शुभ मुहूर्त के हिसाब से कभी भी किया जा सकता है लेकिन विवाह, मुंडन और गृह प्रवेश जैसे खास अवसरों पर कर्णवेध मुहूर्त का महत्व और भी बढ़ जाता है।
कई लोग कर्णवेध जैसे शुभ कार्य को सिर्फ इसलिए टालते रहते हैं क्योंकि उन्हें इसके लिए शुभ मुहूर्त नहीं मिल पाता है या उन्हें शुभ मुहूर्त देखना ही नहीं आता है। ऐसा माना जाता है कि यदि किसी कार्य को मुहूर्त के अनुसार किया जाए तो उसकी सफलता चार गुना तक बढ़ जाती है। यदि आप कर्णवेध के लिए शुभ मुहूर्त देखना चाहते हैं तो आप पंचांग से देख सकते हैं। पंचांग का अर्थ ही है जिसके पांच अंग हों, तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण। ब्राह्मण भी पंचांग के आधार पर ही हर काम के लिए शुभ और अशुभ मुहूर्तों का निर्धारण करते हैं। जिसे चौघड़िया कहा जाता है। कई कैलेंडर्स में चौघड़िया का कॉलम होता है। जिसमें आप कर्णवेध संस्कार के लिए शुभ मुहूर्त खुद भी देख सकते हैं। इसके अलावा आजकल पंचांग से संबंधित कई मोबाइल एप्स भी आ चुके हैं। इन एप्स को आप गूगल प्लेस्टोर से डाउनलोड कर आसानी से देख सकते हैं। बेहतर तो यही होता है कि आप किसी योग्य ब्राह्मण से शुभ मुहूर्त निकलवाकर पूर्ण विधि - विधान से कर्णवेध संस्कार संपन्न करायें।
अधिकांश ज्योतिषियों का मानना है कि कर्णवेध संस्कार के लिए शुभ लग्न, तिथि, माह और नक्षत्र का विशेष महत्व होता है। आधुनिकता की होड़ में आजकल लोग इन्हें नजरअंदाज करने लगे हैं, जिसके दुष्परिणाम उन्हें बाद में झेलने पड़ते हैं। हिंदू धर्म में जितने भी संस्कार हैं उन सब के लिए एक नियम व्यवस्था है। इसलिए सभी कार्य उसी आधार पर करना ज्यादा तर्क संगत प्रतीत होता है। पंडित कहते हैं कि कर्णवेध संस्कार शिशु जन्म के बाद दसवें, बारहवें, सोलहवे दिन या छठे, सातवे, आठवे, दसवे और बारहवे माह में करना बहुत उचित रहता है। बालिकाओं का कर्णवेध संस्कार विषम वर्षों में और बालकों का सम वर्षों में किया जाना चाहिए। बालिकाओं के कान छिदवाने के साथ ही उनकी नाक छिदवाने की भी परंपरा है। फाल्गुन, चैत्र, कार्तिक और पौष मास कर्णवेध के लिए शुभ माने गये हैं। कर्णवेध संस्कार के समय वृषभ, धनु, तुला और मीन लग्न में बृहस्पति हो तो यह समय इस संस्कार के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है। कर्णवेध संस्कार को सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार के दिन करना काफी शुभ माना जाता है। वहीं, चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथि को छोड़कर अन्य तिथियों में कर्णवेध संस्कार किया जा सकता है।
कर्णवेध संस्कार सनातन धर्म और हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए अनिवार्य माना जाता है। हालांकि यह संस्कार जितना आसान और फलदायी है उतनी ही इसकी सावधानियां भी हैं। ज्योतिषियों की ऐसी मान्यता है कि कर्णवेध जिस स्थान है वह स्थान साफ-सुथरा और सकारात्मक होना चाहिए। बालक और बालिका दोनों के लिए कर्णवेध के नियम अलग - अलग हैं। बालक के संदर्भ में मंत्र पढ़ने के बाद पहले दाएँ कान में और फिर बाएं कान में सुई से छेद कर उनमें कुंडल पहनाना सही रहता है। जबकि बालिका के पहले बाएं और फिर दाएं कान में छेद कर कुंडल पहनाने का विधान है। यदि इसका विपरित किया गया तो बच्चे को लाभ मिलने की जगह नुकसान पहुंचने की संभावना होती है। कान छेदने के बाद याद रखें कि कुछ दिनों तक बच्चे के कान में सोने की बाली ही पहनाएं। नकली या आर्टिफिशल कुंडल पहनाना सही नहीं माना जाता है। यज्ञोपवीत के पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष के शुभ मुहूर्त में इस संस्कार का सम्पादन श्रेयस्कर है।
हम आशा करते हैं कि कर्णवेध संस्कार के बारे में हमारा लेख काफी हद तक आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा और इसके माध्यम से आप कर्णवेध संस्कार को सही मुहूर्त में संपन्न करवा कर अपने शिशु को विभिन्न प्रकार की परेशानियों से बचा पाने में सफल होंगे ।