वर्ष 2019 में महाशिवरात्रि 04 मार्च को पूरे देश में मनायी जाएगी। हिंदू धर्म के लिए महाशिवरात्रि बहुत बड़ा एवं महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। एक वर्ष में शिवरात्रि कई बार आती है लेकिन महाशिवरात्रि वर्ष में सिर्फ एक बार मनायी जाती है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महा शिवरात्रि का आयोजन किया जाता है। वहीं दक्षिण भारतीय पंचाग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनायी जाती है। महाशिवरात्रि के दिन व्रत भी रखा जाता है। इस दिन रात्रि जागरण का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से प्राणी मात्र की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
महाशिवरात्रि कब मनाया जाए, इसके लिए शास्त्रों में नियम विधान तय किए गए हैं।
निशीथ काल पूजा मुहूर्त : | 24:08:03 से 24:57:24 तक |
अवधि : | 0 घंटे 49 मिनट |
महाशिवरात्री पारणा मुहूर्त : | 06:43:48 से 15:29:15 तक 5th, मार्च को |
सूचना: यह मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है। जानें अपने शहर का महाशिवरात्रि मुहूर्त
अगर चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं। रात्रि का आठवां मुहूर्त निशीथकाल के रुप में जाना जाता है। साधारण बोलचाल की भाषा में कहें तो जिस दिन चतुर्दशी तिथि शुरु हो और रात्रि का आठवां मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही आ रहा हो तो उसी दिन शिवरात्रि मनायी जानी चाहिए।
अगर चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छूते हुए पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है।
अगर इन दो स्थितियों को छोड़ कर देखें तो हर हाल में यह व्रत अगले दिन ही किया जाता है।
सबसे पहले एक मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरें। उसके उपर बेलपत्र और आक धतूरे का फूल, चावल आदि डालकर आस-पास के किसी शिव मंदिर में जाकर अपर्ण करें। अगर आस-पास मंदिर मौजूद न हो तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर विधि विधान से उसका पूजन किया जाए।
पूरे दिन शिव पुराण का पाठ करें। महामृत्युंजय मंत्र और भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप करते रहें। महाशिवरात्रि के दिन पूरी रात्रि जागरण का भी विधान है।
शास्त्र सम्मत विधि विधान के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन पूजन निशीथ काल में करना सबसे उपयुक्त माना जाता है, हालांकि भक्तगण अपनी सुविधा के अनुसार रात्रि के चारों प्रहरों में पूजा करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चतुर्दशी तिथि के स्वामी स्वयं भगवान महादेव हैं। यही कारण है कि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मास शिवरात्रि पर्व के तौर पर मनाया
जाता है। कई जातक हर महीने की शिवरात्रि को विधि विधान से पूजन अर्चन एवं व्रत करते हैं। ज्योतिष शास्त्रों में हर मास की शिवरात्रि को बेहद शुभ तिथि माना जाता है। ज्योतिष
गणित के आंकलन पर गौर करें तो पाएंगें कि महाशिवरात्रि के समय उत्तरायण हो चुकाहोता है। यही वक्त होता है जब मौसम में भी बड़ा परिवर्तन होता है। ठंड से गर्मी की ओर मौसम का गमन होता है।
ज्योतिष गणित के अनुसार इस तिथि को चंद्रमा अपनी कमजोर स्थिति में आ जाता है। भगवान भोलेनाथ ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है। यही कारण है कि
भोलेनाथ के पूजन अर्चन से प्राणी का चंद्र मजबूत हो जाता है, जो मन का कारक है। समझाने की भाषा में कहा जाए तो भगवान भोलेनाथ की आराधना से इच्छा शक्ति मजबूत होती है और व्यक्ति के अंतःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार होता है।
महाशिवरात्रि पर्व को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है। कई जगहों पर यह विवरण मिलता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने स्वामी के रुप में हासिल करने के लिए
कठोरतम तप किया था। इसी तप के फल से फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। महाशिवरात्रि का त्यौहार भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह को समर्पित होता है। इस त्योहार की बहुत महिमा है।
गरुण पुराण में महाशिवरात्रि त्योहार को लेकर जो कथा कही गई है उसके अनुसार आज ही के दिन निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया था। पूरे दिन वन में भटकने के बाद उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थक हार कर आराम करने एक बिल्व वृक्ष के तले आराम करने चला गया। वहां एक तालाब था। शरीर को आराम देने के लिए निषादराज ने उस बिल्व के वृक्ष के कुछ पत्ते तोड़े। वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था। पत्ते तोड़ने के क्रम में कुछ पत्ते शिवलिंग के उपर जाकर टिक गए। अपने पैरों को साफ करने के लिए उसने तालाब के जल को छिड़का तो जल की कुछ बूंदे शिवलिंग पर जा गिरी। इस दौरान उसका एक तीर नीचे गिर गया। इसे उठाने के लिए वह जैसे ही झुका उसे शिवलिंग दिख गया उसने नतमस्तक होके शिव लिंग को प्रणाम किया। इस तरह निषादराज ने जाने अनजाने शिव पूजन की प्रक्रिया पूरी कर ली। संयोगवश वह दिन महाशिवरात्रि का था। जब निषादराज की मृत्यु हुई और यमदूत उसे लेने पहुंचें तो शिव के गणों ने यमदूतों को खदेड़ कर उसकी अकाल मृत्यु से रक्षा की। इसी लिए शिव को अकाल मृत्यु से रक्षा करने वाला कहा गया।
महाशिवरात्रि की महिमा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब अनजाने में की गई पूजा से भोलेनाथ के गणों ने अपने जातक की रक्षा की, तो विधि विधान से पूजा करने से मनचाहे फल की प्राप्ति क्यों नहीं होगी। यह कथा स्वयं भोलेनाथ ने माता पार्वती को सुनाई थी जब उन्होंने पूछा था कि वह कौनसी श्रेष्ठ व सरल पूजन विधि है जिसके द्वारा जातक को आपकीकृपा प्राप्त होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि का आरंभ भी इसी दिन हुआ था। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में समाहित कर लिया था जो समुद्र मंथन के दौरान बाहर आया था। महाशिवरात्रि का त्योहार माता पार्वती और भगवान शंकर के विवाह की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन देश के कई हिस्सों में भगवान शंकर की बारात निकलती है। इस बारात में उनके भक्त भूत, प्रेत, गंधर्व, किन्नर, पिशाच का वेश धारण कर शामिल होते हैं।
वर्ष 2019 में महाशिवरात्रि त्योहार 04 मार्च दिन सोमवार को है। सोमवार का दिन भोलेनाथ को समर्पित होता है, इसलिए इस वर्ष का महाशिवरात्रि मंगलकारक होगा।
हम उम्मीद करते हैं कि ऊपर दी गयी जानकारी आपको पसंद आयी होगी। महाशिवरात्रि की आपको ढेरों शुभकामनाएं।