वर्ष 2019 में नागपंचमी 05 अगस्त, सोमवार को है। हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा मनाए जाने वाले अनेक त्योहारों में से एक है नाग पंचमी। सनातन परंपरा में श्रावण मास को पवित्र महीने के साथ-साथ त्योहारों का माह भी माना जाता है। इन्हीं त्योहारों में से एक होता है नाग पंचमी। यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रुप से नाग देवता की पूजा अर्चना की जाती है। ज्योतिष मत के अनुसार नाग देव पंचमी तिथि के स्वामी है, यही वजह है कि इस दिन विधि-विधान से नागों की पूजा अर्चना की जाती है।
नाग पंचमी पूजा मुहूर्त : | 05:44:27 से 08:25:27 तक |
अवधि : | 2 घंटे 41 मिनट |
सूचना: यह मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है।
श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी अथार्त् नाग व्रत किया जाता है।
याद रहे कि अगर दूसरे दिन पंचमी तीन मुहूर्त से कम हो और पहले दिन तीन मुहूर्त से कम रहने वाली चतुर्थी से युक्त हो तो पहले ही दिन यह व्रत किया जा सकता है। कई विद्वत समूहों की यह भी मान्यता है कि यदि प्रथम दिन पंचमी तीन मुहूर्त से अधिक रहने वाली चतुर्थी से युक्त हो तो अगले दिन दो मुहूर्त तक रहने वाली पंचमी को भी यह व्रत पूरा किया जा सकता है।
नाग पंचमी व्रत के देव आठ नाग देवता माने गए हैं। इस दिन को अनंत, वासुकी, पद्म, तक्षक, महापद्म, कुलीर, कर्कट और शंख नाम अष्ट नागों की आराधना की जाती है।
नाग पंचमी का व्रत रखने वाले जातक चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करते हैं और पंचमी के दिन उपवास रखते हैं। पंचमी के दिन शाम को सूर्यास्त के पश्चात भोजन ग्रहण किया जाता है।
नाग पंचमी की पूजा करने के लिए नाग देवता का चित्र या फिर मिट्टी से बनी हुई सर्प की मूर्ति को लकड़ी की चौकी के उपर विराजमान किया जाता है। इसके पश्चात हल्दी, रोली अथवा लाल सिंदूर, फूल और चावल चढ़ा कर सच्चे मन से नाग देवता की पूजा की जाती है।
पूजा के दौरान कच्चा दूध, चीनी और घी मिला कर लकड़ी की चौकी पर विराजमान नाग देवता को अपर्ण किया जाता है।
पूजा करने के पश्चात नाग देवता की आरती उतारी जाती है.
सुविधानुसार इस दिन किसी सपेरे को कुछ दक्षिणा वगैरह देकर नाग देवता को दुग्ध पान कराया जा सकता है।
नाग पंचमी की कथा सुननी चाहिए। यह याद रहे कि देश के कई हिस्सों में चैत्र के महीने में एवं भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भी नाग पंचमी मनाई जाती है। कई स्थानों पर क्षेत्रीय परंपराओं के अनुसार यह पर्व कृष्ण पक्ष में भी मनाया जाता है।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप थे। उनकी चार पत्नियां थी। कहा जाता है कि उनकी पहली पत्नी से देव, दूसरी पत्नी से दैत्य, चौथी पत्नी से गरुड उत्पन्न हुए। तीसरी
पत्नी कद्रु थीं जिनका संबंध नाग वंश से था। उन्होंने नागों को जन्म दिया।
पुराणों के अनुसार सर्पों के दो प्रकार होते है। एक दिव्य और दूसरा भौम। दिव्य सर्पों में तक्षक और वासुकी आते हैं। मान्यता है कि ये पृथ्वी का बोझ उठाने वाले हैं। ये प्रज्जवलित अग्नि के समान तेजस्वी हैं। अगर इन्हें क्रोध आ जाए तो अपनी फुफकार और दृष्टि से पूरे संसार को जला कर भस्म कर सकते हैं। इनके डंस से बचने की कोई औषधि पूरे संसार में नहीं है।
भूमि पर उत्पन्न होने वाले सर्पों को भौम कहा जाता है। इनकी दाढ़ में विष पाया जाता है। ये करीब 80 प्रकार के होते हैं , जो मनुष्य को डंस सकते हैं। इनके विष से उपचार का इलाज संभव होता है।
आठ तरह के नाग होते हैं, जिनका जिक्र पहले ही किया जा चुका है। ये आठ नाग हर प्रकार के सर्पों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। इन नागों को भी मानव प्रजाति की तरह चार वर्णों में विभक्त किया गया है। ये ब्राह्मण भी हैं, क्षत्रिय भी और वैश्य, शुद्र भी।
अनंत और कुलिक ब्राह्मण कुल के नाग हैं। वासुकि और शंखपाल क्षत्रिय, तक्षक और महापद्म वैश्य जबकि पद्म और कर्कोटक शुद्र प्रजाति के नाग हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अर्जुन के पौत्र और राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय थे। उनके पिता परीक्षित की मौत तक्षक नामक सर्प के काटने से हो गई थी। इस वजह से उन्हें नाग वंश से दुश्मनी हो गई थी। जन्मेजय ने नाग वंश के सर्वनाश के लिए एक नाग यज्ञ का आयोजन किया। नाग वंश की रक्षा के लिए इस यज्ञ को रोकने के लिए ऋषि जरत्कारु का सहारा लिया गया। ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने इस यज्ञ को रोकने का बीड़ा उठाया और वो इसमें सफल हुए। मान्यताओं के अनुसार जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया, उस दिन श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। तक्षक नाग व उसका शेष बचा हुआ वंश विनाश से बच गया। इसी के बाद से नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हो गई।
हिंदू परंपराओं के अनुसार सर्पों को पौराणिक काल से ही देवताओं के रुप में मान्यता दी गई है और इसी आधार पर इनका पूजन होता रहा है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग देवता को समर्पित किया गया है। यही कारण है कि नाग पंचमी के दिन नाग पूजन का महत्व अत्यधिक होता है।
हिंदू मान्यताओं में कहा गया है कि नाग पंचमी वाले दिन जो भी जातक नागों की पूजा करता है, उसे सर्प के डंसने का भय अपेक्षाकृत कम होता है।
यह भी मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता को दूध से स्नान कराने और दूध पिलाने और पूजा करने से अक्षय पुण्य प्राप्ति होती है। व्यक्ति अकाल मृत्यु से बचता है।
नाग पंचमी का दिन संपेरों के लिए भी विशेष महत्व रखता है। कई धर्म प्रेमी यजमान उन्हें सर्पों को दूध पिलाने के लिए दूध और दक्षिणा देते हैं।
कई जगह घर के प्रवेश द्वार या किसी स्थान विशेष पर सर्पों के चित्र बनाने की भी परंपरा रही है। ऐसी मान्यता है कि चित्र बनाने से घर में सर्प नहीं पहुंचतें।
उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी। नाग पंचमी की आपको हार्दिक शुभकामनाएं।