2019 में चैत्र नवरात्रि त्योहार 06 अप्रैल, शनिवार से 14 अप्रैल, रविवार तक होगा वहीं बात करें शारदीय नवरात्रि की तो 29 सितंबर, रविवार से 07 अक्टूबर, सोमवार तक मनाया जाएगा। हिंदू परंपरा के अनुसार नवरात्रि बहुत ही पवित्र एवं महत्वपूर्ण त्योहार है। नवरात्रि के अवसर पर मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा आराधना की जाती है। सनातन धर्म ग्रंथों तथा वेदों पुराणों आदि में मां दुर्गा को शक्ति स्वरुपा देवी की संज्ञा दी गई है। ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा समस्त संसार की आसुरी शक्तियों से रक्षा करती हैं। शक्ति उपासना का त्योहार नवरात्रि नौ दिनों तक मनाया जाता है। कहा जाता है इन नौ दिनों में समस्त़ देव द्वार खुले होते हैं। यही कारण है कि इस दौरान भक्तगण मां के लिए नौ दिन व्रत करते हैं। भक्त मां से अपने लिए सुखी एवं समृ़द्ध जीवन की आस लिए अनुष्ठान करते हैं।
क्र। सं. | दिनांक | माता के नौ रूप | तिथि |
1. | 6 अप्रैल 2019 | माँ शैलपुत्री | प्रतिपदा |
2. | 7 अप्रैल 2019 | माँ ब्रह्मचारिणी | द्वितीया |
3. | 8 अप्रैल 2019 | माँ चंद्रघण्टा | तृतीया |
4. | 9 अप्रैल 2019 | माँ कूष्माण्डा | चतुर्थी |
5. | 10 अप्रैल 2019 | माँ स्कंदमाता | पंचमी |
6. | 11 अप्रैल 2019 | माँ कात्यायिनी | षष्ठी |
7. | 12 अप्रैल 2019 | माँ कालरात्रि | सप्तमी |
8. | 13 अप्रैल 2019 | माँ महागौरी | अष्टमी |
9. | 14 अप्रैल 2019 | माँ सिद्धिदात्री और नवरात्रि पारणा | नवमी |
दिनांक | घटस्थापना मुहूर्त | अवधि |
6 अप्रैल 2019 | 06:06:18 से 10:18:05 तक | 4 घंटे 11 मिनट |
नोट : दिया गया घटस्थापना मुहूर्त का समय नई दिल्ली, भारत के लिए है।
क्र। सं. | दिनांक | माता के नौ रूप | तिथि |
1. | 29 सितंबर 2019 | माँ शैलपुत्री | प्रतिपदा |
2. | 30 सितंबर 2019 | माँ ब्रह्मचारिणी | द्वितीया |
3. | 1 अक्टूबर 2019 | माँ चंद्रघण्टा | तृतीया |
4. | 2 अक्टूबर 2019 | माँ कूष्माण्डा | चतुर्थी |
5. | 3 अक्टूबर 2019 | माँ स्कंदमाता | पंचमी |
6. | 4 अक्टूबर 2019 | माँ कात्यायिनी | षष्ठी |
7. | 5 अक्टूबर 2019 | माँ कालरात्रि | सप्तमी |
8. | 6अक्टूबर 2019 | माँ महागौरी | अष्टमी |
9. | 7 अक्टूबर 2019 | माँ सिद्धिदात्री | नवमी |
10. | 8 अक्टूबर 2019 | पारणा एवं दुर्गा विसर्जन | दशमी |
दिनांक | घटस्थापना मुहूर्त | अवधि |
29 सितंबर 2019 | 06:12:45 से 07:40:15 तक | 1 घंटे 27 मिनट |
नोट : दिया गया घटस्थापना मुहूर्त का समय नई दिल्ली, भारत के लिए है।
हिंदू मान्यताओं का पालन करने वालों के लिए नवरात्रि बेहद पावन पर्व है। नवरात्रि के महत्व को इसी से समझा जा सकता है कि इसे साल में पांच बार मनाया जाता है, हालांकि विशेष तौर पर चर्चा और आयोजन चैत्र महीने और शरद के समय पड़ने वाले नवरात्रि का
होता है। नवरात्रि के समय में देश भर में जितने भी शक्तिपीठ हैं, मां शक्ति से जुड़े हुए धार्मिक स्थल है, वहां भक्तों का तांता लगना शुरु हो जाता है। मां के भक्त अपने सुविधानुसार तीर्थ स्थलों की ओर रवाना हो जाते हैं। इसके साथ ही नवरात्रि में देश के कई हिस्सों में मेले, माता जागरण, व्रत, अनुष्ठान जैसे कार्यक्रम शुरु हो जाते हैं। पूरी तरह से
माहौल भक्तिमय और आध्यात्मिक हो जाता है। चैत्र और शरद नवरात्रि के अलावा तीन नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इनमें माघ गुप्त नवरात्रि, आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के साथ पौष नवरात्रि भी शामिल है। इन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में सामान्य रुप से अपने पुरोहित की सलाह पर मनाया जाता है।
नवरात्रि पर्व के महत्व को समझने से पहले हम इसका संधि विच्छेद करते हैं। इसके पश्चात यह ज्ञात होता है कि नवरात्रि शब्द नव और रात्रि शब्द के योग से बना है। जिसका आशय होता है नौ रातें। यूं तो नवरात्रि का पावन पर्व देश भर के हिंदू मनाते हैं लेकिन उत्तर भारत
के राज्यों के अलावा गुजरात और पश्चिम बंगाल में ये बेहद भव्य पैमाने पर मनाया जाता है।
इन नौ दिनों में मां के भक्त माता के मंदिरां, उनकी प्रतिमाओं के दर्शन के लिए लालायित रहते हैं। मां को मनाने के लिए नौ दिनों का व्रत करते हैं। शाकाहार का पालन करते हैं। मांस, मछली, शराब, प्याज, लहसुन जैसी चीजों से परहेज करते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। नौ दिनों के व्रत एवं अनुष्ठान के बाद दशमी के दिन व्रत का प्रारण किया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों के बाद आने वाले दिन को विजयादशमी या दशहरा के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने इसी दिन अत्याचारी रावण का वध कर लंका पर विजय पाई थी।
ऐसा नहीं है कि नवरात्रि सिर्फ भारतवर्ष में मनाया जाता है बल्कि जहां-जहां भी भारतवंशी या हिंदू धर्मावलंबी रहते हैं, वहां इसे बेहद प्रेम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मां दुर्गा के प्रति अगाध प्रेम रखने वाले भक्तजन कलश की स्थापना कर नौ दिनों तक मां की पूजा करते है। माता का आर्शीवाद पाने के लिए भक्त भजन कीर्तन करते हैं, माता का जागरण करते हैं। नौ दिनों तक मां के नौ स्वरुपों की पूजा अलग-अलग रुपों में की जाती है, जिसे हम विस्तार से बता रहे हैं।
नवरात्रि का प्रथम दिवस मां के शैलपुत्री स्वरुप को समर्पित होता है। इस दिन माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है। भगवान शंकर की अर्धांगनी माता पार्वती को माता शैलपुत्री का स्वरुप माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार ये पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। मां शैलपुत्री नंदी की सवारी करती हैं। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल होता है। नवरात्रि के पहले दिन लाल रंग का महत्व होता है। लाल रंग सनातन परंपरा में शक्ति, साहस, कर्म और समपर्ण का प्रतीक माना जाता है। जिस दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है, उसी दिन नवरात्रि के लिए कलश स्थापना की पूजा का भी नियम है।
नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित किया जाता है। माता ब्रह्मचारिणी दुर्गा महारानी का दूसरा स्वरुप हैं। जातक कथाओं के अनुसार जब पार्वती मां की शादी नहीं हुई थी तब उन्हें ब्रह्मचारिणी के स्वरुप में जाना जाता था। माता ब्रह्मचारिणी का रुप बेहद अद्भुत होता है। मां के इस स्वरुप का वर्णन करें तो उनका रुप अत्यंत तेज प्रकाशमान एवं तिर्मय है। मां श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। उनके एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जपमाला होती है। मां ब्रह्मचारिणी की आराधना करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के दूसरे दिन नीले रंग का विशेष महत्व है, जिसे शांति, सकारात्मक उर्जा और कर्मशीलता का प्रतीक माना जाता है।
नवरात्रि का तीसरा दिन मां के चंद्रघंटा स्वरुप को समर्पित होता है। इस दिन माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। जातक कथाओं के अनुसार मां दुर्गा का चंद्रघंटा नाम मां पार्वती और भगवान शंकर के विवाह के दौरान पड़ा था। भगवान शिव के मस्तक पर सजा हुआ आधा चंद्रमा इस बात का साक्षी माना जाता है। नवरात्रि के तीसरे दिन पीले रंग का महत्व वर्णित है। पीला रंग साहस के साथ भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
नवरात्रि का चौथा दिन माता कुष्मांडा को समर्पित होता है। इस दिन माता कुष्मांडा की अर्चना की जाती है। वैदिक मान्यताओं के मुताबिक माता के कुष्मांडा स्वरुप की कृपा से ही भूलोक पर हरी-भरी वादियां और हरियाली है। माता कुष्मांडा प्रकृति पर अपार कृपा
बरसाने वाली है। मां शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं। प्रकृति से संबध होने की वजह से इस दिन हरे रंग का महत्व होता है जो हरियाली और समृद्धि का प्रतीक है।
नवरात्रि के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की आराधना होती है। यह दिन मां स्कंदमाता को समर्पित होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय जी का एक नाम स्कंद भी है। स्कंद की माता होने के कारण माता पार्वती का एक नाम माता स्कंदमाता है। मां के इस स्वरुप की चार भुजाएं हैं। माता अपने पुत्र को गोद में लेकर शेर की सवारी करती हैं। इस दिन धूसर रंग का विशेष महत्व होता है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में ग्रे कलर के नाम से जाना जाता है।
नवरात्रि का छठवां दिन मां कात्यायनी को समर्पित होता है। इस दिन मां आदिशक्ति के कात्यायनी स्वरुप की पूजा अर्चना होती है। मां कात्यायनी को साहस का प्रतीक माना जाता है। माता शेर पर सवारी करती हैं। उनकी चार भुजाएं हैं। इस दिन केसरिया रंग का विशेष महत्व होता है जिसे वीरता का प्रतीक माना जाता है।
नवरात्रि के सातवें दिन भक्त मां के उग्र स्वरुप कालरात्रि की आराधना करते हैं। यह दिन मां कालरात्रि को समर्पित होता है। मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जब मां पार्वती ने शुभ निशुंभ नामक दो दैत्यों का संहार किया था तब उनका रंग काला हो गया था। इस दिन सफेद रंग का विशेष महत्व होता है।
नवरात्रि के आठवें दिन मां के महागौरी स्वरुप की पूजा होती है। महागौरी का यह रुप ज्ञान और शांति का मार्ग प्रशस्त करता है। इस दिन गुलाबी रंग का विशेष महत्व होता है। गुलाबी रंग व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक उर्जा का प्रतीक माना जाता है।
नवरात्रि का आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री के लिए समर्पित होता है। इस दिन मां के नौवें एवं अंतिम स्वरुप सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। कहा जाता है कि जो भी जातक मां के नौवें स्वरुप की सच्चे मन से आराधना करता है, उसे समस्त प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति
होती है। मां सिद्धिदात्री का आसन कमल के फूल पर सजता है और उनकी चार भुजाएं होती हैं।
भारत में बेहद श्रद्धा के साथ नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। यही कारण है कि इस अवसर पर जगत जननी, आदिशक्तिस्वरुपा मां दुर्गा के भक्त सच्चे दिल से मां की पूजा
आराधना करते हैं। भक्तों के उपर मां की अपार कृपा बरसती है। नवरात्रि के नौ दिन भक्त अपने घरों को साफ सुथरा रखते हैं। मां की पूजा करते हैं। व्रत करते हैं। कलश स्थापित करते हैं। यथासंभव प्रतिमा की स्थापना भी करते हैं और दसवें दिन मां की प्रतिमा का विसर्जन पास की किसी नदी या तालाब में करते हैं।
देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह से नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। बात करें पश्चिम बंगाल की तो नवरात्रि के समय यहां सिंदूर खेला का प्रचलन होता है। इस परंपरा में महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। वहीं नवरात्रि में गुजरात के गरबा कार्यक्रम की चर्चा तो विश्व भर में होती है। इस समारोह में लोग एक दूसरे के साथ डांडिया नृत्य करते हैं। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके में बंगाल की तरह ही जगह जगह माता की भव्य प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। पंडाल बनता है। उत्तर भारत में जगह जगह रामलीला का आयोजन किया जाता है। दशमी के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकरण का पुतला दहन किया जाता है। कई जगहों पर नौ दिन तक माता जागरण का आयोजन होता है तो कई जगह कुंवारी कन्याओं को माता का स्वरुप मानकर उन्हें भोज कराया जाता है।
मां दुर्गा की मूर्ति अथवा तस्वीर, लाल चुनरी, आम की पत्तियां, चावल, दुर्गा सप्तशती पाठ के लिए किताब, लाल कलावा, गंगा जल , चंदन, नारियल, कपूर, जौ का बीज, मिट्टी का पात्र , गुलाल, सुपारी, पान, लौंग, इलायची आदि।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महिषासुर नामक एक असुर था। वह ब्रह्मा जी का बहुत बड़ा भक्त था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दे दिया कि उसे कोई भी देव, दानव या पुरुष मार नहीं सकेगा। इसके बाद महिषासुर का अंहकार सातवें आसमान पर पहुंच गया। वह तीनों लोकों में आतंक मचाने लगा।
तंग आकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सभी देवताओं के साथ मिलकर मां दुर्गा को शक्ति स्वरुप में जन्म दिया। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और महिषासुर को मां दुर्गा ने मार डाला।
एक अन्य कथा के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम ने लंकापति रावण से युद्ध करने से पूर्व मां शक्ति की आराधना की। राम की शक्तिपूजा से प्रसन्न होकर मां भगवती स्वयं वहां प्रकट हुई और उन्होंन राम को विजयी होने का आर्शीवाद दिया था। नौ दिनों तक मां शक्ति की पूजा के पश्चात दसवें दिन भगवान राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी, इसीलिए इस दिन को विजयादशमी भी कहा जाता है।
हमें उम्मीद है कि नवरात्रि पर हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी। नवरात्रि की आपको हार्दिक शुभकामनाएं।