रक्षाबंधन 2019 दिनांक और कथाएं

वर्ष 2019 में रक्षा बंधन 15 अगस्त, गुरुवार को है। भाई-बहन के निश्छल प्रेम का प्रतीक माने जाना वाला त्योहार है रक्षा बंधन। रक्षा बंधन भाई-बहन के प्रेम का पवित्र उत्सव है। ये प्रत्येक वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है। इस दिन सभी बहनें अपने भाईयों की कलाई पर रंग बिरंगी राखियां बांधती हैं और उनकी सुख समृद्धि की कामना करती हैं। वहीं भाई भी इन राखियों के बदले बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के इलाके में इसे रखड़ी भी कहते हैं। हिंदू धर्म के सभी बड़े त्योहारों में से रक्षा बंधन भी एक है।

रक्षाबंधन का मुहूर्त

राखी बांधने का मुहूर्त : 05:49:59 से 18:01:02 तक
अवधि : 12 घंटे 11 मिनट
रक्षा बंधन अपराह्न मुहूर्त : 13:44:36 से 16:22:48 तक

समस्त हिंदू त्योहारों की तरह रक्षा बंधन का भी अपना मुहूर्त होता है। सबसे पहले तो यह जानकारी आपके लिए बहुत जरुरी है कि रक्षा बंधन का त्योहार श्रावण मास में उसी दिन मनाया जाता है जिस दिन पूर्णिमा अपराह्न काल में पड़ रही हो। रक्षा बंधन के लिए नीचे दिये गए वैदिक नियमों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।

  • श्रावण मास की पूर्णिमा के दौरान भद्रा अपराह्न काल में हो तो उस दिन रक्षा बंधन मनाने से परहेज करें। इसके बाद अगर पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती तीन महीनों में हो तो रक्षा बंधन अगले दिन ही मनाया जाए। पर्व के सारे विधि विधान भी अगले दिन के अपराह्न काल में ही करने चाहिए।
  • इस नियम को अपनाने से यह भी जान लें कि अगर पूर्णिमा अगले दिन के प्रारंभ के 03 मुहूर्तों में न हो तो रक्षा बंधन को पहले ही दिन भद्रा के बाद प्रदोष काल के उत्तरार्ध में मनाया जा सकता है।
  • ग्रहण सूतक या संक्रांति पड़ने पर यह पर्व बिना किसी निषेध के उक्त तिथि को ही मनाया जा सकता है।

वैसे क्षेत्रीय परंपराओं की बात करें तो पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी यूपी के इलाकों में रक्षा बंधन मनाने के लिए अपराह्न काल को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता। यही कारण है कि वहां आम तौर पर लोग मध्याह्न काल से पहले ही राखी का त्योहार मना लेते है। इसी घड़ी में बहनें अपने भाईयों को राखी बांधती है। बात करें वैदिक परंपराओं और शास्त्रों की तो भ्रदा होने पर रक्षा बंधन मनाना पूरी तरह निषेध है, चाहे किसी भी प्रकार की स्थिति क्यों न हो।

रक्षाबंधन की पूजा विधि

रक्षाबंधन का दिन कामनाओं का होता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों को हर बुरी बला से बचाने के लिए ईश्वर से कामना करती हैं और उनके हाथों में रक्षा सूत्र बांधती है। राखी का उद्देश्य जहां भाईयां की समृद्धि, दीर्घायु और खुशियों की कामना है तो वहीं बहनों की

रक्षा का संकल्प भी। इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं जिसे

राखी भी कहते हैं। रक्षा सूत्र बांधते हुए यह मंत्र पढ़ा जाता है :

“ओम येन बद्धो बली राजा दानवेंद्रो महाबलः

तेन त्वामापि बंधांमि रक्षे मा चल मा चल !!”

इस मंत्र का उच्चारण पुरोहित भी अपने यजमान को रक्षा सूत्र बांधते हुए करते हैं। इस मंत्र के पीछे द्वापर की एक महत्वपूर्ण कथा है, जो रक्षा सूत्र बांधने के दौरान पढ़ा जाता है.

रक्षाबंधन मनाने की अन्य विधियां

रक्षा बंधन मनाने की कई अन्य विधियां भी प्रचलित है। कुछ समुदायों की महिलाएं रक्षा बंधन के दिन प्रातः जागने के बाद स्नानादि से निवृत होकर पूजा पाठ करती हैं और दीवाल पर स्वर्ण टांग देती हैं। इसके बाद वो उस स्वर्ण की विधि विधान से सेंवई, खीर, मिष्ठान्न आदि से पूजा करती हैं। फिर इस स्वर्ण पर वो राखी का धागा बांधती हैं। कई महिलाएं नाग पंचमी के अवसर पर गेहूं की बालियां लगाती हैं, उस पौधे को वो पूजा के लिए सुरक्षित रख लेती हैं, भाईयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने के पश्चात वो इन बालियों को भाईयों

की कान के पास लगा देती हैं। कई जगहों पर रक्षा बंधन के त्योहार से एक दिन पहले उपवास भी रखा जाता है। फिर रक्षा बंधन वाले दिन वैदिक विधि-विधान से राखी बांधते और बंधवाते हैं। इसके साथ हीं पितृ तपर्ण, ऋषि पूजन या ऋषि तपर्ण का भी रिवाज है।

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ इलाकों में इस दिन श्रवण पूजन भी किया जाता है। लोक मान्यता है कि इसी दिन मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार इसी दिन राजा दशरथ के हाथों मारे गए थे।

श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर की कथा

एक बार पांच पांडवों में सबसे बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से ऐसी कथा सुनने की उत्कट इच्छा प्रकट की जिसके सुनने मात्र से ही सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाए। यह सुनकर प्रत्युत्तर में श्रीकृष्ण ने धर्मराज को ये कथा सुनाई।

बात प्राचीन काल की है। देवों और असुरों के बीच प्रायः संग्राम होता रहता था। एक दिन ऐसा भी आया जब लगने लगा कि असुरों की ही जीत होगी। असुरों के राजा ने तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया। उसने स्वयं को त्रिलोक का विजेता घोषित कर दिया था। असुरों द्वारा सताए जाने के बाद देवराज इंद्र गुरु बृहस्पति की शरण में पहुचें और देवों की रक्षा के लिए गुहार लगाई। गुरु बृहस्पति ने श्रावण पूर्णिमा को प्रातः काल में रक्षा विधान पूर्ण किया। इस विधान में बृहस्पति जी महाराज ने ऊपर दिए गए मंत्र का उच्चारण किया। बृहस्पति जी के साथ-साथ पीछे-पीछे देवराज इंद्र एवं उनकी पत्नी इंद्राणी ने भी मंत्र को दोहराया। इंद्राणी ने सभी ब्राह्मणों से रक्षा सूत्र में शक्ति का संचार कराया और उसे इंद्र की दाहिनी कलाई पर बांध दिया। इस रक्षा सूत्र से इंद्र को असीम बल मिला। उनकी भुजाओं में अद्भुत शक्ति आ गई। इस सूत्र की बदौलत प्राप्त बल ने इंद्र ने असुरों को युद्ध में हराया और उनका सर्वनाश कर दिया। इसके बाद पुनः उन्हांने अपना खोया हुआ साम्राज्य वापस पा लिया।

रक्षा बंधन से जुड़ी पौराणिक कथाएं

रक्षा बंधन के त्योहार से कई दंतकथाएं भी जुड़ी हुई हैं। आज हम आपको कुछ ऐसी ही पौराणिक घटनाएं बताते हैं जिनका संबंध रक्षा बंधन से है। रक्षा बंधन से जुड़ी कई घटनाएं ऐतिहासिक भी हैं।

लोक मान्यताओं के अनुसार रक्षा बंधन के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण के हाथ पर चोट लग जाने के बाद द्रौपदी ने अपनी साड़ी का कुछ कपड़ा फाड़ कर उनकी मरहम पट्टी की थी। इसी समय कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया था कि हर समय वो द्रौपदी की रक्षा करेंगे। यही कारण था कि जब दुःशासन भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण कर रहा था तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा की थी।

यह भी कहा जाता है कि रक्षा बंधन के दिन ही महालक्ष्मी देवी ने सम्राट बाली की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध कर उनके लिए मंगलकामना की थी। ऐतिहासिक तथ्यों में यह भी घटना सुनने, पढ़ने को मिलती है कि संकट के समय चित्तौड़ की महारानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमांयू को राखी भेजी थी। हुमांयू ने भी रानी कर्णावती की राखी का सम्मान किया और उनके लिए गुजरात के राजा से लड़ाई लड़ी।

हमारी ओर से आपको रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं।