भारतीय संस्कृति में तीज पर्व का बहुत महत्व है। सुहागिन महिलाएं इस पर्व को बहुत ही श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाती है। तीज पर्व उत्तर भारत के बिहार, यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में यह त्योहार बहुत प्रमुखता से मनाया जाता है। तीज
का शाब्दिक अर्थ होता है तृतीया। पौराणिक मान्यता है कि तीज का व्रत रखने से सुहागिन स्त्रियों का सुहाग अमर होता है। इसके साथ ही परिवार में सुख, समृद्धि का वास होता है। जीवन मंगलमय होता है। परिवार के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम का संचार होता है और
सामंजस्य बना रहता है। तीज को हरितालिका तीज के नाम से भी जाना जाता है। इसके
अलावा दो तीज और होती हैं जो सावन और भादो के महीने में आती हैं। इनमें एक है हरियाली तीज और दूसरी कजरी तीज। हालांकि सर्वाधिक लोकप्रिय हरितालिका तीज ही है।
हरितालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है, इसलिए इसे तीज कहा जाता है। यह पर्व भगवान शिव और माता गौरी को समर्पित होता है। अपने मन में पति के दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना लिए महिलाएं ये व्रत करती हैं ओर भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं। कहा जाता है कि तीज करने वाली सुहागिनों पर शिव परिवार की अपरंपार कृपा बरसती है। कुंवारी कन्याएं सुयोग्य और मनचाहा वर पाने के उद्देश्य से यह व्रत करती हैं। कुंवारी कन्याओं की तीज व्रत करने की प्रथा कुछ खास इलाकों तक सीमित है। तीज व्रत मुख्यतः सत्यम् शिवम् सुंदरम् के प्रति अगाध आस्था और चिर प्रेम का त्योहार है। लोक मान्यताओं में प्रचलित कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का पुनर्मिलन तीज के दिन ही हुआ था। कथाओं के अनुसार तीनों लोकों में भगवान शंकर और माता पार्वती सुखी और आदर्श दांपत्य जीवन का प्रतीक हैं। यही कारण है कि तीज का व्रत करने से सुहागिनों को शिव पार्वती जैसा सुखी गृहस्थ जीवन जीने का वरदान प्राप्त होता है।
तीज व्रत सावन और भादो के महीने में मनाया जाता है। इस दौरान तीन तीज आती हैं। इनमें से पहली है हरियाली तीज दूसरी कजरी तीज और तीसरी हरितालिका तीज। इन तीनों में सर्वाधिक महत्व हरितालिका तीज का ही होता है। इसे बड़ी तीज भी कहते हैं। वर्ष 2019 के कैलेंडर के अनुसार हरियाली तीज 03 अगस्त, दिन शनिवार को, कजरी तीज 18 अगस्त, दिन रविवार को जबकि हरितालिका तीज 01 सितंबर, रविवार को है।
वर्ष 2019 में हरियाली तीज 3 अगस्त को मनाई जाने वाली है। हरियाली तीज के मौके पर प्रकृति में चारों ओर हरियाली छाई रहती है और इसीलिए इसे हरियाली तीज कहा जाता है। इस पर्व पर देशभर में मेले लगते हैं जहां बच्चे झूलों और पकवानों का आनंद लेते हैं। इस पर्व पर विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती को पूजा जाता है।
तीज प्रारंभ | 3 अगस्त, 2019 | 01:37:23 बजे से |
तीज समापन | 3 अगस्त, 2019 | 22:06:45 बजे तक |
वैसे तो हरियाली तीज को मनाने के पीछे कई कहानियां हैं लेकिन जिस कहानी को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है वो कुछ इस तरह है कि, जब पार्वती की तपस्या से खुश होकर शिव जी ने उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दिया था तो पार्वती जी बहुत हर्षित हुई थीं। इसी कारण तृतीया तिथि को हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। महिलाऐं शिव जी जैसा वर पाने के लिए इस दिन व्रत रखती हैं।
इस दिन महिलाऐं सज-धजकर रहती हैं और उपवास रखकर शिव-पार्वतीजी की पूजा-अर्चना करती हैं। इस दिन हमारे देश में सुहागिन महिलाओं के लिए उनके ससुराल से कपड़े आते हैं जिसे सिंधारा कहा जाता है। कई जगह इस दिन महिलाएं अपने मायके जाती हैं। महिलाऐं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन धूमधाम से माता पार्वती की झांकी निकाली जाती है।
इस वर्ष यह पर्व 1 सितंबर, 2019 को मनाया जाने वाला है। हरितालिका तीज को बेहद कठिन पर्व माना जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की बालू या मिट्टी की मूर्ति बनाकर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और विधि-विधान से पूजन अर्चन किया जाता है।
प्रातः काल मुहूर्त | 5:58:51 से 18:31:45 बजे तक |
अवधि | 2 घंटे 32 मिनट |
प्रदोष काल मुहूर्त | 18:43:16 से 20:58:30 बजे तक |
हरतालिका तीज पर्व मनाने के पीछे कई कारण हैं जिसमें सबसे बड़ा कारण यह है कि भगवान शिव जैसे संपन्न पति को पाने के लिए महिलाऐं हरतालिका तीज मनाती हैं। कथा है कि माता पार्वती की सहेलियों ने एक बार उन्हें वन में कहीं छिपा दिया था जहाँ अचानक उनकी मुलाकात भगवान शिव से हुई। उत्तर भारत के कई इलाकों में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की परंपरा है।
इस पर्व पर महिलाओं द्वारा सोलह श्रृंगार किया जाता है।मान्यता है कि इस दिन घर में कन्या पूजन करवाने से घर में बरकत आती है और मां पार्वती का आर्शीवाद मिलता है।
घर की साफ सफाई की जाती है। तोरण, मंडप और रंगोली सजाई जाती है। लकड़ी की चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, ऋद्धि सिद्धि, गणेश जी, पार्वती जी एवं उनकी सखियों की आकृति बनाई जाती है। इसके बाद समस्त देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है। इस व्रत का पूजन अर्चन पूरी रात तक चलता रहता है। प्रत्येक पहर में भगवान शंकर और माता पार्वती की आराधना होती है। इस व्रत में व्रती का सोना मना होता है। व्रती का रात भर जागरण बेहद सौभाग्य प्रदान करने वाला माना जाता है।
कई जगह कजरी तीज को कजली तीज भी कहा जाता है। इस तीज को भादो मास की कृष्ण पक्ष को मनाया जाता है। इंग्लिश कैलेंडर के मुताबिक़ यह तिथि जुलाई या अगस्त के महीने में पड़ती है। कजरी तीज में शादीशुदा महिलाएं हीं व्रत रखती हैं। इस त्यौहार की धूम पूरे उत्तर भारत में होती है। पंजाब और हरियाणा में इसे बूढ़ी तीज व सातूड़ी तीज भी कहा जाता है। माना जाता है कि कजरी व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में सुख की वृद्धि होती है। इस वर्ष 18 अगस्त को कजरी तीज मनायी जाएगी।
तीज प्रारंभ | 17 अगस्त, 2019 | 22:50:07 बजे से |
तीज समापन | 17 अगस्त, 2019 | 01:15:15 बजे तक |
मध्य भारत में कजली नाम का एक घना जंगल था। इस जंगल के आसपास के क्षेत्र पर राजा दादूरई शासन करते थे। यहां रहने वाले लोग खूब गाना बजाना किया करते थे, ताकि इससे उनके क्षेत्र का नाम चारों ओर प्रसिद्ध हो। कुछ वक्त बाद जब राजा की मृत्यु हुई तो उनकी पत्नी ने खुद को सती प्रथा के तौर पर अर्पित कर मृत्यु को गले लगा लिया। रानी का अपने पति के प्रति प्यार देखकर लोग उन्हें कजरी के रूप में सम्मानित करने लगे। उसी समय से कजरी तीज मनाई जाती है। यह तीज पति के प्रति पत्नी के के प्रेम को दर्शाती है।
इस दिन महिलाएं प्रातः काल स्नान करने के बाद श्रृंगार करती हैं। इस दिन महिलाओं द्वारा निर्जला व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत के दिन रात में महिलाएं शिव-पार्वती का श्रंगार करती हैं और घर में कीर्तन भजन करती हैं। कई इलाकों में शादीशुदा महिलाएं अपने सास-ससुर और ससुराल के अन्य लोगों को इस दिन उपहार भेंट करती हैं।
कजरी तीज के दिन नीमड़ी माता की पूजा करने का नियम है। पूजा शुरू करने से पहले एक दीवार पर मिट्टी व गोबर से तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है व इसके चारों ओर नीम की टहनियां लगाई जाती हैं। मिट्टी से बनाए इस तालाब में कच्चा दूध और जल डाला जाता है और इसके किनारे घी का दिया जलाया जाता है। थाली में ककड़ी, नींबू, सत्तू, केला, सेब, रोली, अक्षत, मौली आदि रखे जाते हैं। इसके बाद सोलह श्रृंगार रखकर माता नीमड़ी की पूजा विधि-विधान से की जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तीज व्रत के बारे में भगवान शंकर ने माता पार्वती को विस्तार से बताया था। माता गौरा ने पार्वती माता के रुप में हिमालय के घर में जन्म लिया था। माता पार्वती को प्रारंभ से ही भगवान शंकर के प्रति आकर्षण था। वह बचपन से ही वर के रुप में भगवान शिव को पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने घनघोर तप किया। 12 साल तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए भगवान शंकर को पाने के लिए अनुष्ठान किया। हिमालय जी महाराज से एक दिन नारद जी ने आकर कहा कि पार्वती जी के कठोर तप से भगवान विष्णु बेहद प्रसन्न हैं। वह आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। नारद मुनि की बात सुनकर हिमालय महाराज बेहद खुश हुए। नारद जी ने उधर भगवान विष्णु से जाकर कहा कि महाराज हिमालय जी अपनी पुत्री पार्वती का विवाह आपके साथ करना चाहते हैं। इधर विष्णु जी भी प्रसन्न हो गए। उन्होंने सहर्ष इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
नारद जी तो खिलाड़ी थें। दोनों से सहमति मिलने के बाद वह पार्वती मां के पास पहुंचें और कहा कि आपके पिता हिमालय जी महाराज ने आपका विवाह भगवान विष्णु से निश्चित कर दिया है। माता पार्वती यह सुनकर बहुत दुखी हो गईं। उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध किया कि मुझे कुछ दिन एकांतवास में रहना है। मुझे किसी गुप्त स्थान पर छोड़ दिया जाए। पार्वती जी की इच्छानसार सखियों ने पिता हिमालय जी महाराज की नजरों से बचाते हुए एक सुनसान और घने जंगल की एक गुफा में उन्हें पहुंचा दिया। यहां पर पार्वती जी ने सर्वप्रथम एक शिवलिंग की स्थाना की। इसके बाद उन्होंने भगवान शंकर को पति के रुप में पाने के लिए बेहद कठोर तप शुरु कर दिया। संयोग की बात है कि वह दिन भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी और नक्षत्र हस्त था जिस दिन माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना कर निर्जला उपवास किया और रात्रि जागरण किया। उनके कठोर तप की शक्ति से भगवान शंकर भी पिघल गए और समस्त मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दे दिया।
मनचाहा वरदान प्राप्त होने के बाद माता पार्वती ने सखियों को बुलाया और उनके साथ व्रत का पारण किया। तमाम पूजा सामग्रियों को गंगा नदी में प्रवाहित किया। इधर पुत्री के गृह त्यागने के बाद से ही हिमालय जी महाराज व्याकुल थे। उन्होंने भगवान विष्णु से बेटी
के विवाह का वचन दिया था। वचन पूरा न हो पाने का दुख उन्हें सता रहा था। पार्वती जी को खोजते-खोजते हिमालय जी उस स्थान पर पहुंच गए जहां पार्वती जी तप कर रही थीं। उन्होंने पार्वती जी से घर त्यागने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया उन्होंने भगवान शंकर से विवाह करने का संकल्प लिया है। उन्होंने भगवान शंकर से मिले वरदान के बारे में भी पिता को बताया। इसके बाद पुत्री की इच्छा को सर्वोच्च मानते हुए पिता हिमालय जी महाराज ने भगवान विष्णु से क्षमा मांगी और भगवान शंकर से माता पार्वती के विवाह के लिए राजी हो गए।
जिस किसी जातक का दांपत्य जीवन संकट या कष्ट में है वह इस व्रत को अवश्य करें। व्रत के दिन काम,क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, निंदा, झूठ से दूर रहकर माता पार्वती और भगवान शंकर के चरणों में ध्यान लगाएं और पूरे दिन श्री भगवते साम्ब शिवाय नमः मंत्र का जाप करें। अखंड सौभाग्य एवं अविरल दांपत्य सुख की प्राप्ति होगी।
आप सभी को हिंदी कुंडली की ओर से तीज की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ !